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________________ जीव और कर्म-विचार । व्रतोंके अतिवारमादि विषयमें परिणामोंकी उतनी विशद्धता नहीं रखता है। कभी कभी प्रमादसावको प्राप्त कर देता है। प्रत्याख्यानका संदोदय श्रावकके समस्त व्रतोंको सावधान रुपसे परिपूर्ण रूप पालनेके लिये समर्थ होता है। माया (प्रत्याख्यान ) कषायके परिणाम भावोंकी वक्रतासे महावतके परिपालन करनेमें असमर्थ होता है। प्रत्याख्यानलोभ-जिस कषायके उदयसे जीव कदमके समान लोभ परिणामको धारण करे, वह प्रत्याख्यानलोभकषाय है। कदमको धो डालनेसे वस्त्र अपने शुद्ध स्वरूपको सहज प्राप्त हो जाता हैनधिक प्रयत्न करनेको आवश्यकता नहीं होती है। और न विशेषकालकी जरूरत है कदमका रंग स्वल्प समयमें स्वभावसे उड जाता है। इसी प्रकार जो कषाय निग्रंथरूप ( समस्त प्रकारके ममत्वभाव समस्त पदार्थों के सू रूप परिणाम) सबै प्रकारके परिग्रहत्यागरूप परिणामको नहीं होने देवे-वह प्रत्याख्यानलोभ. कषाय है। असलमें चारित्रभावको ( वीतरागभावको) धारण नहीं कर देनेकी शकि एक लोमकषायमें है। लोभ कषायसे हो पर-पदार्थमें रागभाव होता है । प्रत्याख्यानलोभकषायका उदय जीवोंको परिग्रह शरीर और धन कुटुम्बादिकोंसे सर्वथा ममत्वभावका त्याग (ग्रन्यका त्य ग) नहीं होने देता है तोमो देशसंयमको घात नहीं करता है। । परिणामोंमें विकृति-जितना लोभकपाय करता है। उतना क्रोध-मान-माया कपाय नहीं करता है।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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