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सोच और पार्स-विवार। है उसका त्याग - उससे किंचित्पात्र सा नहीं हैं। स्यागवुद्धिके परिणाम भी नहीं होते हैं। तो भी अनीमिसे, इस प्रकार आनदित नहीं होता है कि आत्मसुखक्षी प्रीति हो।
अप्रत्याख्यान लोभ भघातरमें जानेलायक होमनम् सपोर. को उदय नहीं करता है । तोभी बाह्य पदाको ममता असाधारण होता है । यएलेको उनसे मित्र जानता हुआ मी उन रुचि (राग) फरता है। परिणाफी ऐली ही खूटी होती है।
. अत्याख्यानलपाय __ जिस लायके उदयसे जीवोंके परिणाम महारतके धारण फरले योग्य नहीं होते हैं।
प्रत्याख्यानक्रोध-जिस बायके उदयसे वालुकाली रेखाके सलामोध हो-वह प्रत्याख्यानकोर कपाय है। लिसप्रकार वालुकामी रेखा स्वल्प समयमें नाश हो जाती है. अधिक समय तक नहीं रहती है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानकोर कषायके परिणाम स्वरूप-सालय पर्यत रहते हैं। उन परिणाम में जोवरश करनेकी भावना सर्वथा नहीं होनी है यदावारसे लास्तजीवों. की त्या पाल करता है अलक्षार अनीति-फुत्सित आचार विचार-और जिनधर्म विरुद्ध मलिनाधारको उत्पन्न करनेवाले क्रोधके भाव साल में नहीं रहते हैं। परिणाम विशुद्धता रहती है मोधका उदय होनेपरमी संकल्पभावसं जीवोंको नहीं मारता हैन ऐसा वैरभाव धारण करता है जिससे संकल्पपूर्वक जीवोडा वध करना थडे पा जैनधर्मके विरुद्ध मलिलावार धारण करना