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________________ ___ जीव सौर फर्म विचार। [१५. पापापासरण या रसदाचार रोफफर देशसंयमझे योग्य प्रमा. भारण फर नहीं सका है। संपमका सर्य गशुमसे निवृत्ति और शुभमे प्रवृति प पत. नाता है। जिस फपायके उदयसे ऐसा स्यूल संपम धारण नहीं सके मोर उसके योग्य भावों में विशुद्धता प्राप्त न हो सके। मप्रत्यारपान फोध-जिमके उदयले जीव एलरेखाफे समान कोषको प्राप्त हो घद यप्रत्याख्यान फ्रोध है। जिसप्रकार इलझी रेखा कुछफाल में नष्ट हो जाती है। यहुत काल पर्यंत नहीं ठहरती है। इसी प्रकार अप्रत्यास्थान फ्रोध कुछ काल पर्यंत जीवोंको अपना संस्कार रतलाता है। भवांतरमें उसकोधफा संस्कार नहीं होता है। अप्रत्याख्यान क्रोधः उदयसे भी जीव युद्ध करता है धेर. माव धारण करता है। गृहन्यधर्मके योग्य आरंभ करता है पलह करता है परन्तु उसका क्रोध नीति मर्यादाको नहीं छोड. साहै। धर्म-मर्यादा उलंघन तहीं करता है वह जीववध धर्म नहीं मानता है। मध मास मधुका सेवन नहीं फरता है इस. प्रकार अनंतानुबन्धी फोध और अप्रत्याख्यान क्रोधमें बहुत मारी भेद है। इस क्रोधफे उदयसे सम्यग्दर्शन नष्ट नहीं होता है किंतु - नए हो जाता है। कभी कभी पाक्षिक श्रापकके योग्य संयमको पालन नहीं कर सका है। अप्रत्याख्यान मान-जिसके उदयसे जीव हाडके समान मानको प्राप्त होता है उसको अप्रत्याख्यान मान कहते हैं।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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