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________________ লী ৫ জাষ্ট্র-ভিসা। सिध्या या लग जाते हैं। बिलायती विद्यालोंके सामने में. चनोको सिख्यामानने लग जाते हैं यह सब लोभका है परिणाम है। कितने ही पंटार्थ पंडित नटनी के समान जिधर रोटी उधर ही गीत गाने लाते हैं। धर्मको टका रोचते फिरते हैं। हफा लिये वे सत्यधर्मकी निंदा करते हैं और विध्याधर्मको लत्य मानने लगते है यह लोग मतानुवन्धी लोभ ही है। ___ जो मनुष्य लोभकेलिये हिलामें धर्म पतलाचे, झूठ बोलने में धर्म बतलावे, व्यभिचागमें धर्म पतलाचे, सभक्षणमें धर्म बत. लावे, निंध माचरणों में धर्म पतलावे। सपकार अनीति और असक्षाचरणको सो मनुष्य धर्म कहकर भोले भाइपोको पापकुडमें पटके वह सप अन्तानुसन्धी लोभ है। सुधारक लोगोंने धर्मको एक प्रकारको विचारमाना है जिस विचारसे धन सम्पत्ति प्रतिष्ठा और यश मिले वही सध्या धर्म सकारके विधारसे धर्माधर्मकी परीक्षा किये बिना ही कुसाको धर्म मानकर (धन सम्पत्तिकी प्राप्तिको आशा) बढाई पूर्वक लेवन करने लग जाते हैं और दूसरे जीनोमो युक्ति प्रयुक्ति द्वारा बड़े प्रलोभन देकर कुमार्गमें पटक देते है यह अनंतानुवन्धी लोभकी महिमा है। अप्रत्याख्यानावरण चारित्रमोहनीकर्म जिस मायके लदयले जीव देशसंयम (लामासंयन)को धारण नहीं कर सके। परिणामों में ऐसी विशुद्धता भात नहीं हो जिससे
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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