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१३६] जीव और कर्म विचार । कोई जातिपाति उठाकर मोक्षमार्ग नष्ट करदेना चाहता, है, कोई मद्य मास खानेकेलिए धर्म बतला रहा है, कोई असमर्थ गौ मनुः प्यको हिसामें धमे बतलाने लगा है। इस प्रकार पश्चिम देशकी कुशिक्षासे मिथ्यात्वकी वृद्धि होरही है इतनाही नहीं कितु कुशिक्षाके प्रभावले पुण्य पाप-जीव कर्म आदि समस्त बातों में नास्ति. कता प्रक्ट रूपसे होरही है । इस प्रकार कुशिक्षासे जैनो कहलाने वाले और जैनकुलमें उतान्न हुये सुधारकोंकी ऐसी भयंकर दशा होरही है तोव मिथ्यात्यका भाव होरहा है तो अन्य साधारण जनताको कुशास्त्रोंकी कुशिक्षासे कैसा भयंकर परिणाम होता होगा यह अनुमान पाठकोंको स्वयं करलेना चाहिये। सदाचार और आवार विचार आदि तो प्रत्यक्षही लोप होजाते हैं इसलिये गृहीत मिथ्यात्वका कारण कुशास्त्रोंका अध्ययन और खोटे उपदेशोंका सुनना है।
संसारके जितने मत है वे प्राय. गृहीत मिथ्यात्वही रूपांतर है । श्वेताम्बरमत पाणनीमत-लु कामत आदि जैनामालमत मी ग्रहीत मिथ्यात्वके रूपान्तर है। कितनेही सुधारक तीनों मतका एकरूप लाना चाहते हैं। वे असली तत्वको नष्टकर मिथ्यात्वका प्रचार करना चाहते हैं। या अपना मतलब बतानेके लिये मागी. रथी प्रयत्नकर संसारसे सत्यधर्मका नाश करना चाहते हैं। ____ एकातादि मिथ्यात्वका स्वरूप अन्य ग्रन्थोंमें विस्तारसेलिखा है। इसलिये यहांपर लिखने की आवश्यकता नहीं है।
(२) सस्यग्मिथ्यात्व प्रकृति-कोदोंके चूर्णके समान जीवोंके