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जीव और कर्म-दवार। [१३५ पश्चिमदेशकी [ धार्मिक शिक्षा-विहीन ] कुशिक्षासे मनुष्यों. के परिणाम कितने भयंकर हो रहे है। यह सबको प्रत्यक्ष विदिन हो है। पश्चिम देशको कुशिक्षाके कारण कोई नो शास्त्रोंको हो अप्रमाण मानता है। कोई उसको फाट-छांट कर मनकल्पित विपर वासनासे शास्त्रोंको फ्लकिन बना रहा है। कोई धनके लोमसे शास्त्रोंमें संशय उत्पन्नके साधनोंको शक्तिपर प्रयत्न कर रहा है। कोई तीव्र मिथ्यात्वी शास्त्रोंमसे फरणानुयोग प्रथमानुयोगको नहीं मानना है । चरणानुयोगको मान्यता दिखा. कर अपनी प्रनिष्ठा रखनेकेलिये लोगोंके सामने मिथ्या नाटक बनाना है। परन्तु वरणानुयोगको अमान्यकर विधवाविवाह जैसे व्यभिचार फैलाना चाहता है। कोई मृनिकोही नहीं मानना चाहता है-तीर्थकर मरहन्त भगवान सर्वज्ञ नहीं थे मुहमद पैगम्बरके समान साधारण ज्ञानी थे। पूर्वके जमानेसे तो इस समय अधिक विद्वान मनुष्य होते हैं ससारमें सर्वज्ञ कोई हो नहीं सका ? इस प्रकार आहत तीर्थंकर भगवानके स्वरूपकोही माननेकेलिये ही तैयार नहीं है। कोई सुगुरु (निग्रंथ गुरुओंको) कोही माननेके लिये तैयार नहीं है। सुगुरुभोशी निंदाकर कोई पेटार्थ जगतको अपने तीव्र मिथ्यात्वके उदयस,टगना चाहता है। कोई शीलधर्म. को नष्ट करदेना चाहता है कोई अपनेको ब्रह्मचारी कहकर व्यभि. चारका मार्ग खोलता है और विषयवासनामें मन्न होता है उसमें मग्न होकर अनुभवानंद प्रकट करता है, कोई हिंसामें धर्म बतलाने लगा है, कोई वकील असत्य (झ) में धर्म समझता है।