SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४] जीव और कर्म विचार । जैसे कोदोंको दलनेसे तीन भेद हो जाते है। कोदोंके वावल १ फोदोंके चावलका चूर्ण (भूखा) २ और कोदोंका तुप ३ इसी प्रकार दर्शनमोहनीके ही तीन भेद हो जाते हैं। मिथ्यात्व कर्म जीवोंको अतत्वध्रद्धान कराता है पदार्थोके खरूपमें यधाधे श्रद्धान नहीं होने देता, साप्तानमगुरुकी प्रतीति नहीं होने देता । आत्मस्वरूपकी प्रतीति नहीं होने देना वह मिथ्यात्वम है। वह कोदोंके तेदुल (चावल) के समान महान. मूर्छामावको उत्पन्न करता है। इसी मिथ्यात्वको अग्रहीत कहते हैं। अनादिकालपे मुच्छा परिणामोको धारणपर पर-यन्तुमें अहंता और ममताभावको यह जीव इस मिथ्यात्वके प्रभावसे प्राप्त होता है इस मिथ्यात्वके 'वल्से ही जीव घोर अज्ञान भाव और तीव्रतम पायभावको प्राप्त होता है, नित्य-निगोदिया जीव इसी मिथ्यात्वके प्रभावसे एक श्वासमें अठारह बार जन्म-मरणको धारण करता है। अनादिकालसे यह अग्रहीतमिथ्यात्व जीवोंको अनेक प्रकारके दुःख देता है ' प्रोत मिथात्व-कुदेव कुशास्त्र और कुगुरुओंको कुसंगतिसे होता है वह भी मिथ्यात्वकाही भेद हैं ग्रहीतमिथ्यात्वके प्रभावसे जीवोंके परिणाम अनेक प्रकारले विपरीत रूप होते हैं। मनत्व श्रद्धान स्वरूप होते हैं। एकान्त विपरीत-संशय-विनय आदि भेद इसी ग्रहीतमिथ्यात्वके हैं। सबसे भयंकर परिणाम कुशास्त्रोके अध्ययन करनेसे जीवोंको होता है। कुशास्त्रों के अध्ययनले तत्काल ही मिथ्यात्वका असर आत्मापर होता है।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy