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________________ जोर और कर्म विनार। [१३१. गुणम्यानपयन मनुवेदन फगता और ग्यारपाद धार नरहवं गुणम्यानाम मोरनोरमपा यमार नेमे पानोपमा उदय नोर्ण रम्मो ममान होता है । अनुवेदना नहीं होती है। मोनार्म जिस ममसे उदयमे जीवके गुणोम विपरीत मात्र उत्पन्न हो अनत्वमें नव प्रोनि हो। नन्यमें अनन्ध प्रतीनि हो। अपने समारसो भूलयर विपरीनमाप वान्मधदा फर उसको मोहनी समें पहने है। जिस प्रकार उन्मादी मन-मनुष्यको हिताहित बुद्धि नहीं होती है। यानुयों मयासन्यका निर्णय नहीं रहता है। टस हान प्रमाणिकता नहीं रहती है। उसकी परिणति पिन यनत्व प्रदानगर मिथ्या रहती है। उसके मांगाम व्या. मोरपी शिप-मिधिन नहर निरंतर प्रवाहित रहती है। इसके परिणाममि मिथ्यात्वका रंग चढ़ जाने गर्गरादि जड पदार्य में ही यात्माफी कायना होती है। उस मानमें समानता, उसकी अदा मिथ्यामार होते हैं। उसको मेद-मिलान नदी होता है। मत्य पटायको पहिचान ही नहीं होती है। जिस प्रकार मदिरापान यग्नेवाले मनुष्यको शानकी विशुद्धि नहीं है, अपने म्यमावको भूल जाना है मानाको नी बार स्नीको माता मानना है, विपरीत-मायको धारण फर सन्यथा श्रद्धान करता है। एनीप्रकार मोदनीफर्मफे उदयसे जीव विपरीत मागेको धारण करना है। गरीरको जोर मानता है। जीवको जह मानता है। जीवको कमी फमी मानना ही नदी, जीवक स्वरूप में
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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