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जीव और कर्म -विचार ।
द्वेएकी
नी फर्म के उदयको भोगता हुआ भी उससे अलिप्त रहता है, रागअथवा आर्त रौद्र परिणाम नहीं करता है मसाताके उदयमें व्याकुलित नहीं होता है । साताके उदयमें वैकुण्ठ सुख नहीं मानना है !
इस प्रकार वेदनीकर्मके उदयसे जीवोंको अनेक प्रकारके सुख दुःख भाव होते हैं । जीवोंके भावोंके भेदसे वेदनीकर्मके अनेक भेद होते है तोभी उन सबका कार्य सुख दुःख होने से समस्त भेद वेदनकर्ममें ही अंतर्गत होते हैं ।
वेदनी कर्म आत्माके गुणोंका प्रतिघात नहीं करता है । जिस प्रकार ज्ञानावरण धर्म या दर्शनावरण कर्म आत्माकं ज्ञान और दर्शन गुणोंका प्रतिघात करते हैं वैसे वेदनीकर्मके उदयसे आत्माका कोई भी गुण प्रतिघात नहीं होता है इसलिये वेदनीकर्म अघाती है।
तीर्थंकर केवल भगवानके आत्मीय गुणोंका प्रकाश व्यक्त होगया है परन्तु तीर्थंकर केवली भगवानके वेदनीफर्मका उदय मोजूद है । इसलिये वेदनीकर्म आत्माके गुणोंका घातक नहीं है ।
कितने ही मनुष्य - वेदनीकर्म आत्माके अतीन्द्रिय सुखका घात करता है ऐसा मानते हैं परन्तु यह एक मनोनीत कपोलकल्पना है | तीर्थंकर केवली भगवान के आत्मीय अतीन्द्रिय अनंत सुखका व्यक्तीकरण हैं परन्तु वेदनीकर्मका अभाव नहीं है किन्तु उदय हो है ।
इस प्रकार वेदनीकर्म मिथ्यात्वगुणस्थानसे लेकर दशवें