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जाव और कर्म-विचार।
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सम्यग्दृष्टो जीवोंको ही पुरपार्थकी प्राप्ति होती है इतर संसारी जीवोंको पुरुयार्थ नही होता है। मोक्षकी प्राप्ति पुरुषार्थ के द्वारा हो होती है। इसलिये भव्यजीवोंको परमपुत्यार्थकी प्राप्तिकेलिये वेदनीयफर्मके उदयमें सुख और दुःख नहीं मानना चाहिये । ___ मोहनीकर्म उदय (मिथ्यात्व ) से जीवोंको वेदनोर्म विपरीत अनुवेदन कराता है। मिथ्यादृष्टो जीव शरीरके जन्ममें आत्माका जन्म और शरीरके मरणमें आत्माका मरण, शरीरके सुखमें आत्मीय सुख मानता है । पुत्र मित्र फ्लन आदि बन्धु कुटुम्ब पवीला और धन संपत्तिको अपनाता है। वेदनीकर्मसे प्राप्त भोगोपभोग पदार्थोंमें आत्मबुद्धि करता है। मात्माका अनुवेदन करता है इसलिये पर पदार्थोंसे राग द्वेप करता है । इष्टचरतुकी प्राप्ति मुखी होता है अनिष्ट वस्तु की प्राप्तिमें दुःखी होता है, इष्ट वस्तु के वियोगमें दुबी होना है और अनिष्ट वस्तुके वियोगमें सुखी होता है परन्तु यह सा वेदनीकर्मके उद्यका फल है। उसको ही यात्मा मानना और वसा अनुवेदन करना यह सर मिथ्यात्वकर्मके उदगलेही वेदनीकर्मके अनुवेदनमे विपरीत मावई
सम्यग्दृष्टी जीव वेदनीकर्मके उदयसे होनेवाले सुप दुःख तथा वैसी सुख दुःख प्रदान करनेवाली सामग्रोके प्राप्त होनेपर हर्प और दुःत्री नहीं होता है। वेदनोर्मकी उदयालको भोग करता हुआ सम्यग्दृष्टी जीच उसमे यात्मबुद्धि नहीं करता है साता वेदनीक उदयसे प्राप्त सुनको भात्मीय सुख नहीं मानता हे उसमें आत्मजन्य मावोंकी कल्पना नहीं करता है। इसलिये वह वेद.