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दीव और कर्म-विचार। [१२० काटई यया-गांववावारहिन. रणवाधारहित, अनिवृष्टि वाधारहित, मनावृष्टि वाधारइिन, रोग पीडा योर संतापकी वावासे रहिन सुनमय कालके द्वारा जो कर्मजीवोंको मुखपत्र करे वह मानावेदनी को है।
नावसे यथा-उपराम परिणान-गांतिमय जीवन, संक्लेश. रदिन मात्र, विना मार मानसीक पीडा रहित परिणाम, मार्च और दुर्विचार रहित निराकुन भावरे द्वारा जो फर्म डीवोंगे सुख उत्पन्न करे वह डावावेदनों में है।
निस कम उदय सब प्रकार दु.म प्रान हो, इन्दिय मन और शरीरको पता करनेवाली सामान प्राप्त हो, अनिष्ट बम्नुका मनागम हो या दृष्ट वस्नुस विदोग हो दसको असाटावेदनीर्म
असावावदनी कर्म मी कश्य-त्र-कल और मार द्वारा जीवको दुात प्रान करता है।