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जीव और कर्म विचार |
पर- पदार्थों में सुख दुःखका उद्भास होने लगता है संसार में जो कुछ प्रिय अप्रिय पदार्थोका उद्भास होरहा है वह सव वेदनी कर्मके निमित्तसे ही है ।
पदार्थोंमें सुख दुःख देनेकी शक्ति नहीं है किंतु आत्माके भावोंसे और वेदनी कर्मके उदयसे उन पदार्थोंमें ऐसी शक्ति प्रकट हो जाती है जिससे सुख दुःखकी प्रतीति जीवको होती है । वेदनकर्मके मेद
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वेदनकर्मके दो भेद हैं । १-सातावेदनी, २ असातावेदनी । जिस कर्मके उदयसे जीवोंको सांसारिक सुख प्राप्त हो इन्द्रिय और Hast सतोषकारक सामग्री प्राप्त हो वह सातावेदनो कर्म है सातावेदनी कर्मके उदयसे द्रव्य-क्षेत्र - काल और भावके द्वारा जीवोंको सुख प्राप्त होता है ।
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द्रव्यसे यथा - मनोज्ञ - इन्द्रिय मनको संतोषकारक और प्रिय ऐसे अन्नपान भोगोपभोग सामग्रीकी प्राप्ति, मनोहर कोमल और प्यारे वस्त्रोंकी प्राप्ति, उत्तमोत्तम रत्न सुवर्ण आदिके अलंकारों की प्राप्ति, सुखोत्पादक हाथी घोडा रथ पालकी आदि वाहनों की प्राप्ति, नयनप्रिय सुन्दर शरीरकी प्राप्ति, सेवाभकपरापण स्त्री पुत्रादिकी प्राप्ति इत्यादि अनेक प्रकार दुव्यके द्वारा जो कर्म जीवोंको सुख उत्पन्न करे उसको सातावेदनी कर्म कहते हैं ।
क्षेत्र से यथा - उत्तमोत्तम विमान उत्तमोत्तम महल, मनोज्ञ प्रासाद-सुखकर प्यारी, वसनिका घर आदि क्षेत्र के द्वारा जो कर्म जीवोंको सुख उत्पन्न करे उसको सातावेदनी कर्म कहते हैं