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जीव और कर्म विचार ।
३- अवधि दर्शनावरण-जो कर्म भवधि दर्शनको आवरण करे उसको अवधिदर्शनावरण फर्म कहते है । अवधिज्ञान के प्रथम अवधिदर्शन होता है अवधिदर्शनके आवरण-अवधिको दर्शनावरण कर्म कहते हैं।
देव नारकी जीवोंको अवधिदर्शन भवप्रत्यय रूप होता है । अन्य साधारण संसारी जीवोंको क्षयोपशम निमित्त अवधिदर्शन होता है । यद्यपि भवप्रत्यय अवधिदर्शनमें अवधिदर्शनाबरण कर्मका क्षयोपशम होता ही है और अवधिदर्शन में तो क्षयोपशम प्रत्यक्ष ही कारण है ।
जिस प्रकार अवधिज्ञान आत्मासे होता है इसी प्रकार अव धिदर्शन भी आत्मासे होता है । इन्द्रिय और मनसे अवधिदर्शमका संबंध नहीं है ।
अवधिदर्शनसे सुदूरवर्ती पदार्थका दर्शन होता है । कालसे बहुत कालवर्ती पदार्थका दर्शन होता है ।
अवधिदर्शनसे जीव पदार्थोंका दर्शन करता है और अवधिदर्शनावरण कर्म उसका आवरण करता है ।
(४) केवल दर्शन - जो कर्म आत्माको सक्ल जगतके चराचर पदार्थोंका एक साथ प्रत्यक्ष दर्शनका आवरण करे उसे फेवलदर्शनावरण फर्म कहते हैं ।
जैसे केवलज्ञान से समस्त पदार्थोंका ज्ञान होता है आत्मा शायक स्वभाववाला है वैसे समस्त पदार्थोंका दर्शन केवलदर्शनसें होता है इसलिये आत्मा दृष्टा स्वभाववाला हैं !