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________________ जीव और कर्म-विचार। [११७. . (२) जो म आत्माको चक्षुदर्शनके सिवाय अन्य स्पर्शादिक इन्द्रियोंसे होनेवाला अचक्षुदर्शनका घात करे सावरण करे उसको अचक्षुदर्शनावरण कर्म कहते है ।हवाका शीत परिज्ञान. सूर्यकी उष्णताका दर्शन, स्निग्धताका दर्शन, फर्कश कठोर पदार्थका स्पर्श द्वारा दर्शन यह सब अवक्षुदर्शन है। इसी प्रकार आम्लरसका दर्शन, मधुर रसका दर्शन, तिक पदार्थका दर्शन, कटु पदा. र्यका दर्शन इत्यादि पदार्थोके रलका अचक्षुदर्शन जिदा ( रसना, इन्द्रिय द्वारा आत्माको होता है, सुगंधोका दर्शन दुर्गंधीका दर्शन यह अवक्षुदर्शन घ्राण इन्द्रिय द्वारा आत्माको होता है । जैसे गुलाब के फूलकी सुगंधी और मिट्टाके तेलका दुगंधीका दर्शन यह सचक्षु दर्शन है। तत-क्तिन-नाद आदि अक्षरात्मक और अनक्षरात्मक पदार्थों का दर्शन यह श्रात इन्द्रियफा अचक्षुदर्शन हैं। चक्षुइन्द्रियको छोड़कर अवशेष चार इन्द्रियों के द्वारा रसंरूप गंध और शद्व तथा तन्मिश्रित पदार्थोका दर्शन अवक्षु दर्शन कह. लाता है। एकेन्द्रियसे नादि लेकर तीन इन्द्रिय पर्यंत जीवोंको तो नियमसे अवच दर्शन ही होता है चार इन्द्रिय और पचेन्द्रिय जीवोंको वक्षुदर्शन और अचक्षु दर्शन होता है। मनसे पदार्थका अवलोकन करना सो भी अचक्षु दर्शन कहलाना है। - इस प्रकार अचक्षु-दर्शनावरण अनेक-प्रकारसं होता है। द्रव्य क्षेत्र कालकी अपेक्षासे अचक्षुदर्शनावरण कर्मके असंख्यात भेद प्रमेद हैं। उन सबको अचक्षुदर्शनावरण कर्म करता है ।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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