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जीव और धर्म-विचार।
___पन्द्रह प्रमादों में से एक निद्रा नामका प्रमाद है। निद्रा प्रमाद सदैव आत्माके गुणोमे व्याघात पहुंचाता रहता है। निद्रा यह दर्शनाबरणकर्मका भेद है इसलिये दर्शनावरण कमे भात्मा का साक्षात्कार होनेमे प्रतिबाधक है इसलिये दर्शनावरणको दूर करनेके लिये योगीजन ध्यान संयमतपत्ररण करते हैं।
जिस प्रकार एक राजाका दर्शन प्रहरी ( पहरेदार सिपाई) रोक देना है ठीक इसी प्रकार पदार्थोके दर्शनको दर्शनाबरण फर्म रो देता है। पुद्गलारमाणुलो आत्माके संयोगले ऐसी विलक्षण शक्ति उत्पन्न हो जाती है जिससे यात्मामे दृष्टागुणको उपयोग नहीं हो सका है। आत्मा दर्शनावरणीकर्मके उदयले पदा. थोंको देख नही सका है। यद्यपि दर्शनगुण आत्माका है और वह निलोकका दर्शन आत्माको एक क्षण में विना किसीको लहा. यताके करा सकता है परंतु वह गुण दर्शनावरणी कर्मके उदयसे' भव्यक्त हो गया है।
. दर्शनावरण-कर्मके भेद | (१) चक्षु दर्शनावरण कर्म-जो आत्माको चक्षु द्वारा पदा. र्थोका और पदार्थोके रूप (वर्ण ) का दर्शन नहीं होने देवे उसको चक्षुदर्शनावरण कर्म कहते हैं। पदार्थोके वर्ण और पदार्थोका दर्शन चक्षु (नेत्र ) इन्द्रिय द्वारा होता है। जैसे-लाल मानका वर्शन चक्षुके द्वारा आत्माको होना सो वक्षुदर्शन है। चक्षुमें देखनेकी शक्ति है परतु आत्मामें चक्षुदर्शनावरण कर्मका उठयः होनेपर आनका दर्शन आत्माको नहीं होता है।