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जोप और कर्म विचार। ॥ सिध्याय उपयले मनिशान धनवान और अधिशानमें विq. रोतना दो मतितान मोरधतज्ञानफा विशेष क्षयोपशम होनेपर मोजो मिटायफा उदय तो मोक्षमार्गका प्रकाश आत्मा नहीं होता स्तुि मोक्षमार्गके विपरीत प्रकाश यात्मामें प्रकट होना है। वह भंग और नर का मान रखनेवाला (मतिमान और धनमानका विशेष क्षयोपशम रखनेवाला जीय) मनुष्य मिप्यात्यपर्मके उदयप्ते मोक्षमागेसे पामुक होता है।
हानको सम्पाशानना या ज्ञानको प्रमाणना मिथ्यात्वार्मके अमाप मेंहो (क्षय उपशम) दोनोई । इसलिये मिष्याष्टियोंको मतिज्ञान धुनहानसा क्षयोपशम विशेष हो सक्ताह विध्यादी भी मनिशान धनमानके प्रभावले पदार्थों को विशेष जानते है । भारी दिन हो सके हैं। पान्तु उनका मान प्रमाणरूप सत्य नहीं होता है। ___ अधिवानायगण पर्म-जो कर्म, रूपी (मूर्तक ) पदार्थोकी मर्यादासे होनेराला इन्द्रिय मोर मनसे अगोचर (इन्द्रियातीत) मात्मीय मानको भाररण फर वह अवधिज्ञानावरण फर्म है। ___ यविधानको प्रत्यक्षमान पतलाया है यह आत्मोदर है। अधिमानमें इन्द्रिय गौर मनको सदायताको आवश्यकता नहीं है। मरधिमानका विषय ट्रप क्षेत्र फालकी अपेक्षासे यहुत भारी है। अपधिज्ञानी जीव फिनने दी भवांतर यतला सके हैं।
अधिष्ठानके भेद असख्यात है। तो भी मुख्य तीन भेद है देशाधि-सर्वावधि और परमावधि । सर्वावधि और परमावधि मोक्षमार्गस्थ छठे गुणस्थानी मुनि जीवको ही होती हैं और पद