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जीव और फर्म- विचार ।
मोक्षमार्गके- अन्तिमपर्यंत रहती है। देशावधि अनेक प्रकार हैं। देशामो होयमान वर्द्धमान अवस्थित अनव-,
वधि के अनुगामी स्थित आदि अनेक भेद है ।
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अवधिज्ञानावरणकर्म उपर्युक्त समस्त प्रकारके अवधिज्ञान को आवरण करता है । भवप्रत्ययसे होनेवाले अवधिज्ञानमें भी अवधिज्ञानावरणकर्मके क्षयोपशमकी आवश्यकता होती है देव और नारकी जीवोंके भवप्रत्यय अवधिज्ञान नियमसे होता है । जिस जीवको देव या नरकगतिमें जाना होतो उसको उसी समय अवधिज्ञाना. चरणका क्षयोपशम होता है ।
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जिसप्रकार मतिज्ञान श्रुतज्ञान वाह्यनिमित्त पठनपाठन स्वाध्याय चिंतन मननसे व्यक्त होते हैं । ( जो मतिज्ञानावरण कर्म और श्रुतज्ञानावरण कमका क्षयोपशम हो तो ) उसीप्रकार अवधिज्ञान भी तपकी विशेष शक्तिस व्यक्त होता है ।,
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ज्ञानके व्यक्त होने में आभ्यंतर और वाह्य दोनों प्रकार के कारण होते हैं। अंतरंग कारणकी प्रचलना होनेपर और वाह्य कारणका सहज निमित्तमात्र मिलनेवर कार्य प्रकट होजाता है, अवधिज्ञानावरण धर्मका क्षयोपशम अंतरंग- कारण प्रबल होनेपर और वाहा तपश्चरण की सातिशय विशुद्धता होनेपर अवधिज्ञान प्रकट होता है ।
- मन:पर्ययज्ञानावरण कर्म- जो कर्म दूसरे जीवोंके मनमें अवधारित हुए सूक्ष्म अत्यंत सूक्ष्म मूर्तिमान पदार्थ और उनकी पर्यायको इन्द्रिय और मनकी सहायता विना ही आत्मासे होने