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________________ जीव और कर्म-विधार। कि जिसके बिना आत्माम पदार्थक जाननेकी ताकत आत्माके हानगुणमें प्रकट नहीं होती है। जब तक आत्माके ज्ञानगुणमें आवरण है तब तक मात शान पदार्थों के प्रकाश करने में असमर्थ है शानमें प्रकाश करनेकी शक्ति है। परन्तु उस शकिका माच्छोदन कर्मके निमित्तसे होरहा है जो कर्म इन्द्रियोंके द्वारा होनेवाले जानमें ही बावरण कर देवे। तो जब तक उस कमका क्षयोपशम नहीं होगा तब तक आत्माके ज्ञानगुणमें जाननेकी शक्ति प्रकट नहीं रहती है इसलिये मतिक्षानावरणकर्म इन्द्रिय और मनके ज्ञानगुणको प्रकट नहीं होने देता है। " श्रुतज्ञानावरण-मतिज्ञानके द्वारा जो ज्ञान आत्मामें प्रकट होता है उस ज्ञानमें विचारात्मक शक्ति श्रुतज्ञान के द्वारा व्यक होती है । आत्मा पर ऐसे कर्मों का आवरण होजावे जिससे मतिज्ञानके द्वारा संग्रहात ज्ञानमें विचारात्मक शक्तिका आभाव हो। पदार्थोंका जानलेना अवग्रहादिकोंके द्वारा आत्मसात कर लेना यह सब यद्यपि ज्ञानका विषय है मतिज्ञानको भी मान कहते हैं और श्रुतज्ञानको भी ज्ञान कहते हैं। जैसे मतिज्ञानके तीनसो छत्तोल भेद या उत्तर भेद असंख्यात होते हैं। उसी प्रकार तज्ञानके द्वारा ज्ञानमें जो विशेषता बिचारात्मक शक्ति होती है वह सब श्रुतज्ञानका विषय होता है । श्रुतज्ञानावरणकर्म कानमें ऐसे ही विचारात्मक शक्तिका आवरण करता है । जिससे ज्ञानमें ऊहापोहात्मक विशेष शक्ति प्रकट नहीं होती है। अथवा
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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