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जीव और कर्म विचार |
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करे वह मतिज्ञानावरण कर्म है मतिज्ञानके
३३६ भेद हैं । भेद प्रभेदकी अपेक्षा - अनंतानंन भेद है । ( मतिज्ञानके भेद प्रभेदोका वर्णन आगे लिखेंगे )
संसारी जीवोंको पदार्थोंका ज्ञान इन्द्रिय और मनके द्वारा हो होता है । यद्यपि ज्ञान यह आत्माका धर्म है । आत्माका गुण है आत्माका स्वभाव है तथापि क्षम्य जीवोंको वह ज्ञान पदार्थोंको इन्द्रिय और मनके द्वारा ही जानता है । मतिज्ञान इन्द्रिय और मनके द्वारा ही आत्माको पदार्थों का प्रतिभास कराता है ।
इन्द्रिय दो प्रकार है- द्रव्य इन्द्रिय और भाव इन्द्रिय । द्रव्य. इन्द्रियके भी दो भेद है - निर्वृत्ति और उपकरण । निवृत्तिके भी दो भेद हैं- बाह्यनिर्वृत्ति और आभ्यंतर निवृत्ति | आत्माके प्रदेश में इन्द्रिय रचना रूप होने की शक्ति होना मो आभ्यंतर निवृत्ति है । और उत्सेधांगुनके असंख्ानभाग प्रमाण पुद्गल कर्मोकी न इन्द्रियरूप हो वह वाह्य निवृत्ति है । इन्द्रियोंके उपकरणोंको (रक्षकोंको) उपकरण कहते है । इन्द्रियोंमें आत्माके प्रदेश होनेसे इन्द्रियोंके द्वारा जो ज्ञान होता है वह आत्माको ही होता है । इन्द्रियोंमें ज्ञानशक्ति नहीं है जो इन्द्रियोंके द्वारा ज्ञान होरहा है वह केवल मात्माको ही होरहा है ।
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भावेन्द्रिय के दो भेद माने हैं. व्धि और उपयोग । मौके
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क्षयो प अत्मा के भावों में ऐसी शक्ति प्रकट होना जिसके द्वारा आत्मा पर्दार्थो से अवगत कर सके। इस क्षयोपशम शक्तिके. विना आत्मापर कर्मोंका आवरण ऐसा आच्छादित हो रहा है
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