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जोव और फर्म-विधार। [१०३ जिस प्रकार पदार्थोके परिमानमें फर्मोका क्षयोपशम प्रधान कारण माना है उसी प्रकार कमौका आवरण भी पदार्थों परिझान नहीं होनेमें प्रधान कारण है। __सूर्यमें प्रकाश होना उसका स्वाभाविक गुण है। सर्यपर परदा या बादल आजानेसे प्रकाश गुण नष्ट नहीं होता है किंत
बांदल या परदाके कारण उस प्रकाश गुणका आवरण हो जाता .. है बादलोंका आवरण दूर हो जाने पर प्रकाश वैसा ही प्रकाश
रूप प्रकट होता है । परदा या बादलोंसे प्रकाश गुणमें विकार नहीं होता है। आत्माम झानगुणका प्रकाश स्वभाव रूप सदेव विद्यमान है उस ज्ञानगुणको फर्म भावरण कर लेता है ज्ञानको हक लेता है। परंतु मोहनीकर्मक भावसे झानमं विकृति प्रतिभास होती है जैसे विकृत नको नेत्रपर रखने पर सूर्यका पकाश विकृत दीखता है। मात्र भेद इतना ही है कि मोहनीकर्मके उद. यसे आत्माका ज्ञानका स्वादमो विपरीत होता है कार्य भी विप. रोत होता है और परणति विपरीत होती है।
दर्पणमें प्रतिछाया पडना दर्पणका स्वाभाधिक गुण है कृत्रिम नहीं है सयोगी धर्म नहीं है। दूसरे पदार्थकी शक्तिसे उत्पन्न होता हो ऐसा भी नहीं है। या जवरन करालिया जाता हो ऐसा भी नहीं है। इसी प्रकार मात्माका ज्ञानगुण उसका स्वभाविक धर्म है आत्मा झानगुणके द्वारा सतत प्रमाशी है। समस्त पदार्थों को प्रकाश करनेका उस आत्माका धर्म है। परन्तु जैसे दर्पण पर गैल सचिकन रूपसे जम गया हो तो दर्पणमें प्रतिविष