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________________ निश्चयनय : कुछ प्रश्नोत्तर निश्चयनय के भेद-प्रभेदों को विस्तृत चर्चा के उपरान्त भी कुछ सहज जिज्ञासाएँ शेष रह गई है, उन्हें यहाँ प्रश्नोत्तरों के रूप में स्पष्ट कर देना समीचीन होगा। (१) प्रश्न :- शुद्धनिश्चयनय एवं एकदेशशुद्धनिश्चयनय में क्या अन्तर है ? उत्तर :- शुद्धनिश्चयनय का विषय पूर्णशुद्धपर्याय से तन्मय अर्थात् क्षायिकभाव से तन्मय (अभेद) द्रव्य होता है और एकदेशशुद्धनिश्चयनय का विषय आंशिकशुद्धपर्याय से तन्मय अर्थात् क्षयोपशमभाव के शुद्धांश से तन्मय (अभेद) द्रव्य होता है। यहाँ यह बात ध्यान रखनी होगी कि यहाँ जो 'शुद्धनिश्चयनय' लिया है, वह मूल 'शुद्धनिश्चयनय' न होकर उसके तीन भेदों में जो 'शुद्धनिश्चयनय या साक्षात्शुद्धनिश्चयनय' आता है, वह है । इन दोनों में अन्तर जानने के लिए बृहद्व्यसंग्रह गाथा ८ की टीका का निम्नलिखित अंश अधिक उपयोगी है : "शुभाशुभयोगत्रयव्यापाररहितेन शुद्धबुद्ध कस्वभावेन यदा परिणमति तदानन्तज्ञानसुखादिशुद्धभावानां छमास्थावस्थायां भावनारूपेण विविक्षितैकदेशशुद्धनिश्चयेन कर्ता, मुक्तावस्थायां तु शुद्धनयेनेति । जब जीव शुभ-अशुभरूप तीन योग के व्यापार से रहित, शुद्ध-बुद्धएकस्वभावरूप से परिणमन करता है, तब छमस्थ अवस्था में भावनारूप से विवक्षित अनन्त-ज्ञान-सुखादिशुद्ध-भावो का एकदेशशुद्धनिश्चयनय से कर्ता है और मुक्त-अवस्था में अनन्तज्ञान-सुखादिभावों का शुद्धनय से कर्ता है।" इस उद्धरण में ध्यान देने की बात यह है कि आत्मा को अनन्तज्ञानसुख आदि पूर्णशुद्धभावों का कर्ता मुक्त-अवस्था में तो शुद्धनय से बताया है, पर उन्हीं पूर्णशुद्धकेवलज्ञानादिभावों का छद्मस्थ अवस्था मे एकदेशशुद्धनिश्चयनय से कर्ता बताया है, जबकि वे केवलज्ञानादि उस समय है ही नहीं।
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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