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[ जिनवरस्य नयचक्रम् मुत्तं इह महणाणं मुत्तिमदम्वेण जण्णिो जह्मा। जइ गहु मुत्तं गाणं तो किं खलियो हु मुत्तेण ॥२२६॥
मतिज्ञान मूर्तिक है, क्योंकि वह मूर्तिकद्रव्य से पैदा होता है। यदि वह मूर्त न होता तो मूर्त के द्वारा स्खलित क्यों होता ? - यह विजातीय गुरण में विजातीय गुण का आरोप करनेवाला असद्भूतव्यवहारनय है।
ठ्ठरणं पडिबि लवदि हु तं चेव एस पज्जायो। सज्जाइ असम्भूमो उवयरिमो रिणयज्जाइपज्जाम्रो ॥२२७॥
प्रतिबिब को देखकर 'वह यही पर्याय है' - ऐसा कहा जाता है । - यह स्वजाति पर्याय में स्वजाति पर्याय का उपचार करनेवाला असद्भूतव्यवहारनय है।
णेयं जीवमजीवं तं पिय रणारणं खु तस्स विसयादो। जो भरगइ एरिसत्थं ववहारो सो प्रमभूदो ॥२२८।।
ज्ञेय जीव भी है और अजीव भी है। ज्ञान के विषय होने से उन्हें जो ज्ञान (जीव का ज्ञान, अजीव का ज्ञान - इसरूप में) कहता है, वह स्वजाति-विजाति द्रव्य में स्वजाति-विजाति गुरण का उपचार करनेवाला असद्भूतव्यवहारनय है।
परमाणु एयदेशी बहुयपदेसी पयंपए जो हु। सो ववहारो णेमो दवे पज्जायउवयारो ।।२२६।।
जो एकप्रदेशीपरमाण को बहप्रदेशी कहता है, उसे स्वजाति द्रव्य में स्वजाति विभाव पर्याय का उपचार करनेवाला असद्भूतव्यवहारनय कहते है।
रूवं पि भरणइ दव्वं ववहारो अण्णप्रत्थसंभूदो। सेप्रो जह पासाम्रो गुरणेसु दव्वारण उवयारो ॥२३०॥
अन्य अर्थ में होनेवाला व्यवहार, रूप को द्रव्य कहता है, जैसे सफेद पत्थर । यह स्वजाति गुरण में स्वजाति द्रव्य का उपचार करनेवाला असद्भूतव्यवहारनय है ।।
गाणं पि हु पज्जायं परिणममारगो दुगिहए जह्मा। ववहारो खलु जंपा गुणेसु उवयरियपज्जाप्रो ॥२३॥
परिणमनशील ज्ञान को पर्यायरूप से कहा जाता है। यह स्वजाति गुरण में स्वजाति पर्याय का आरोप करनेवाला असद्भूतव्यवहारनय है।