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________________ व्यवहारनय : कुछ प्रश्नोत्तर ] [ १३६ वण थूलखंघ पुग्गलदम्वेत्ति जंपए लोए । उवयारो पज्जाए पुग्गलदव्वस्स मरणइ ववहारो ॥२३२॥ स्थूलस्कंध को देखकर लोक में उसे 'यह पुद्गलद्रव्य है' - ऐसा कहते है। यह स्वजाति विभाव पर्याय में स्वजाति द्रव्य का उपचार करनेवाला असद्भूतव्यवहारनय है। दळण देहठाणं वण्णंतो होइ उत्तमं रूवं । गुरण उवयारो भरिणो पज्जाए रगत्थि संदेहो ॥२३३।। शरीर के आकार को देखकर उसका वर्णन करते हुए कहना कि कैसा उत्तमरूप है। यह स्वजाति पर्याय में स्वजाति गुरण का आरोप करनेवाला असद्भूतव्यवहारनय है।" उक्त सम्पूर्ण उदाहरण अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय के है; क्योंकि इनमें मात्र उपचार किया गया है, उपचार में उपचार नही। जहाँ उपचार में उपचार किया जाता है, वहाँ उपचारित-असद्भूतव्यवहारनय होता है। उपचारित-असद्भूतव्यवहारनय के स्वरूप और भेद-प्रभेदो का स्पष्टीकरण द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र में इसप्रकार किया गया है : "उवयारा उवयारं सच्चासच्चेसु उहयप्रत्येसु । सज्जाइइयरमिस्सो उवयरिमो कुरणइ ववहारो ॥२४२॥ सत्य, असत्य और सत्यासत्य पदार्थो मे तथा स्वजातीय, विजातीय और स्वजाति-विजातीय पदार्थो मे जो एक उपचार के द्वारा दूसरे उपचार का विधान किया जाता है, उसे उपचरितासद्भूतव्यवहारनय कहते है । देसवई देसत्थो प्रत्थवरिणज्जो तहेव जपतो। मे देसं मे दध्वं सच्चासच्चपि उहयत्थं ॥२४३॥ 'देश का स्वामी कहता है कि यह देश मेरा है' - यह मत्य-उपचरितअसद्भूतव्यवहारनय है; 'देश में स्थित व्यक्ति कहता है कि देश मेरा है' - यह असत्य-उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय है और 'व्यापारी अर्थ का व्यापार करते हुए कहता है कि धन मेरा है' - यह सत्यासत्य-उपचरितअसद्भूतव्यवहारनय है।। पुत्ताइ बंधुवग्गं प्रहं च मम संपयाइ जप्पंतो। उवयारासन्भूमो सजाइदन्वेसु गायव्वो ॥२४४॥ 'पुत्रादि बन्धुवर्गरूप मैं हूँ या यह मेरी संपदा है' - इसप्रकार का कथन करना स्वजाति-उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय है।
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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