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[ जिनवरम्य नयचक्रम्
अधिक क्या लिखू ? सम्पूर्ण ग्रन्थ एक बार नही, अनेक बार मूलतः पठनीय है। इस अद्वितीय ग्रन्थ के प्रणयन के लिए डॉ० भारिल्लजी को हार्दिक बधाई देते हुए तत्त्वप्रेमी पाठको से इसका गहराई से अध्ययन करने का अनुरोध करता हूँ। इसका व्यक्तिगत स्वाध्याय तो किया ही जाना चाहिए, सामूहिक स्वाध्याय में भी इसका पाठन-पाठन होना चाहिए । तथा विश्वविद्यालयीन जैनदर्शन के पाठ्यक्रम एव समाज द्वारा मचालित परीक्षा बोर्डो के पाठ्यक्रमो मे भी इसे सम्मिलित किया जाना चाहिए।
उसके सुन्दर शुद्ध एव आकर्षक मुद्रण के लिए श्री मोहनलालजी जैन एव श्री गजमलजी जैन, जयपुर प्रिन्टर्मवाले हार्दिक बधाई के पात्र है। माथ ही इस पुस्तक की कीमत कम करनेवाले दातागे को भी हार्दिक धन्यवाद देता हूँ, जिनके नाम इमप्रकार है :श्री जम्बूप्रसादजी अभिनन्दनप्रसादजी जन, महारनपुर (उ. प्र ) ५०००) श्री केशरीमलजी गंगवाल C, छीतरमलजी पाग्मकुमारजी,
बूदी (राज.) ८०१) श्री प० अभयकुमारजी शास्त्री जबलपुरवाले, जयपुर ५४०) श्री दि० जेन मुमुक्षु मण्डल, रांझी, जबलपुर (म० प्र०) १५१) व० श्री विमलावेन, वम्बई (महा०) श्री मदनगजजी छाजेड़, शास्त्रीनगर, जोधपुर (राज०) १०१) श्री रेशमचंदजी जैन सर्राफ, ग्वालियर (म० प्र०)
१०१) श्री प्रकाशचंदजी शाह, जयपुर श्री नागचंदजी झाझरी, जयपुर
कुल ६६१७)
१०१)
१०१)
नेमीचंद पाट मत्री, पंडित टोडरमल