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व्यवहारनय : भेद-प्रभेद ]
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(ग) भिन्नवस्तुनों के संश्लेषसहित सम्बन्ध को विषय करनेवाले अनुपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय के स्वरूप व विषयवस्तु को स्पष्ट करनेवाले कतिपय शास्त्रीय उद्धरण इसप्रकार है :
(१) "संश्लेषसहित वस्तुसम्बन्धविषयोऽनुपचरिता सद्भूतव्यवहारो यथा - जीवस्य शरीरमिति । "
सश्लेषसहित वस्तुओ के सम्बन्ध को विषय करनेवाला प्रनुचरितप्रसद्भूतव्यवहारनय है । जैसे - जीव का शरीर है ।"
द्रव्यकर्मणां
(२) "प्रासनगतानुपचरितासद् भूत व्यवहारनयाद् कर्त्ता तत्फलरूपाणां सुखदुःखानां भोक्ता च
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'अनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण नोकर्मणां कर्त्ता ।
आत्मा निकटवर्ती अनुपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय से द्रव्यकर्मो का कर्त्ता और उसके फलस्वरूप सुख-दुःख का भोक्ता है"
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''''अनुपचरित प्रमद्भूतव्यवहारनय मे नोकर्म अर्थात् शरीर का भी कर्त्ता है ।'
(३) "अनुपचरितासद्भूतव्यवहारान्मूर्तो । 3 अनुपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय से यह जीव मूर्त्त है ।" (४) "अनुपचरितासद्द्भूतव्यवहारनयेन देहादभिन्नम् । ' अनुपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय से यह आत्मा देह से प्रभिन्न है ।' (५) "अनुपचरितासद्द्भूतव्यवहारेण द्रव्यप्राश्च यथासंभवं जीवति जीविष्यति जीवितपूर्वश्चेति जीवो ।
"
अनुपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय से जीव यथासंभव द्रव्यप्रारणो के द्वारा जीता है, जीवेगा और पहले जीता था ।"
(६) "जीवस्योदयिकादि भावचतुष्टयमनुपचरितासद्द्भूतव्यवहारेग द्रव्यकर्मकृतमिति । "
१ प्रालापपद्धति, पृष्ठ २२८
* नियमसार, गाथा १८ की तात्पर्यवृत्ति टीका
3 बृहद्रव्यसंग्रह, गाथा ७ की संस्कृत टीका
४ परमात्मप्रकाश, अ० १, गाथा १४ की सस्कृत टीका
५ पंचास्तिकाय, गाथा २७ की तात्पर्यवृत्ति टीका
● पंचास्तिकाय, गाथा ५८ की तात्पर्यवृत्ति टीका