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जिनवाणी ईश्वर कर्ता नहीं हो सकता।
तब फिर ईश्वरको क्या समझें ?
पाश्चात्य विद्वानोंमें कुछ ऐसे दार्शनिक है जो यह मानते हैं कि स्रष्टा और जीवको भिन्न माननेसे स्रष्टा छोटा बन जाता है, अत एव वे ईश्वरके अतिरिक्त अन्य किसी भी सत्ता या सत्वको नहीं मानते। ये दार्शनिक "पान-थि-इस्ट" नामसे प्रसिद्ध हैं। प्राचीन ग्रीक दार्शनिका पामोनेडिस तथा ईलियाटिक संप्रदायके दर्शनमें 'पान-थी-इज्म' का आमास पाया जाता है । प्लेटोके सिद्धान्तोंको एरिस्टोटलने जो नवीन रूप दिया है उस मेंभी यह 'पान थी-इज्म' अथवा 'विश्वदेववाद' भरा है। मध्य युगमें आभारोइस बहुत प्रसिद्ध 'विश्वदेववादी' था। तत्वदर्शी-शिरोमणि स्पिनोज़ा वर्तमान योरुपके विश्वदेववादका बड़ा प्रवर्तक माना जाता है। सुप्रसिद्ध हीगेल, शोपनहार आदि जर्मन दार्शनिक 'पान-थि-इस्ट' माने जाते हैं। विश्वदेववादका मूल सूत्र यह है कि जीव या अजीव, जगतके समस्त पदार्थ एकान्त सत् हैं और सत्मात्र ईश्वरके विकास एवं परिणति स्वरूप है; ईश्वर सिवाय
और कुछ है ही नहीं। पृथक् पृथक् जीव तुम्हें भले ही दिखलाई दें, परन्तु मूलमें तो एक ही है । ईश्वरकी सत्ताके कारण ही सब सत्तावान हैं, ईश्वरके प्राणसे ही सब प्राणवान् है । बस, एक ईश्वर ही ईश्वर है,
और कुछ है ही नहीं । जगत् पृथक् है, एक अलग सत्ता है यह केवल भ्रम है। ___ भारतवर्षमें भी अति प्राचीन कालसे अद्वैतवादी इसी प्रकार जगतके पदार्थसमूहकी सत्ता तथा विविधताको अवगणना करके " ब्रह्म सत्यं