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जिनवाणी (८५), न्यग्रोवपरिमंडल संस्थान-इस कर्मके कारण न्यग्रोध
(वट), वृक्ष जैसा शरीर बनता है। अर्थात् शरीरका नीचेका भाग छोटा-कुबडा और ऊपरका भाग बडा
तथा सुडौल होता है। (८६) स्वातिक संस्थान इससे न्यग्रोधपरिमण्डलकी
अपेक्षा अन्य ही प्रकारकी आकृति होती है। (८७) कुब्जक संस्थान-इसके उदयसे कूबवाला शरीर
मिलता है। (८८), वामन संस्थान-इसके उदयसे छोटा (ठिंगना) शरीर
मिलता है। (८९), हुण्डक संस्थान-इसके उदयसे शरीरके अंगोपांग
छोटे वडे होते है, परस्पर मेल नहीं खाते और
शरीरका आकार कुरूप बनता है। नवम संहननकर्म-इसका सबन्धः अस्थिपंजरकी रचनासे है। यह कर्म छः प्रकारका है। वर्तमान समयमें अन्तिम तीन प्रकार ही देखे जाते है
(९०) वजरुषभनाराच संहनन' -इसके उदयसे शरीरकी
हुंड संस्थान-इससे शरीरका प्रत्येक अवयव लक्षणहीन होता है।
१ वज्रऋषभनाराच संघयण (सहनन)-अस्थिसघटनमें सघयण नामकर्म कारण है। जैसे दो पदार्थोंका मजबूत वधन हो, उसके ऊपर पट्टी हो
और उस पर कील लगी हो, तो इससे वह वन्धन जिस प्रकार मजबूत होता है, उसी प्रकारका मजबूत अस्थिका बन्धन (संघटन) इस कर्मसे दृढ होता है।