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जिनवाणी वैक्रियक शरीरको कान्ति देनेवाला शरीर प्राप्त
होता है। (६९) कार्मण शरीर-इसके उदयसे कर्मपुद्गलघटित कर्म
शरीर उत्पन्न होता है। चतुर्थ अंगोपांगकर्म-इससे जीव-शरीरके अंगोपांगकी योजना होती है। तीन प्रकारके गरीरके अंगोपांगकर्म भी तीन प्रकारके होते हैं:(७०) औदारिक-इसके उदयसे औदारिक शरीरके अंगो
पांग होते हैं। (७१) वैक्रियक-इसके उदयसे वैक्रियक शरीरके अंगोपांग
वनते है। (७२) आहारक-इसके उदयसे आहारक शरीरके अंगोपांग
__ बनते हैं।
(७३) पंचम निर्माणकर्म-इस कर्मसे शरीरके अंग और उपांग यथास्थान यथा परिमाण व्यवस्थित होते है।
छठा बन्धनकर्म शरीरके औदारिक परमाणुओं (छोटेसे छोटे अंगो) को एक दूसरेके साथ यथोचित रूपसे संयुक्त करता है। शरीर पांच प्रकारका है, इस लिये वन्धनकर्म भी पांच प्रकारके होते है।
(७४) औदारिक बन्धनकर्म। (७५) वैक्रियक बन्धनकर्म। (७६) आहारक वन्धनकर्म। (७७) तैजस बन्धनकर्म। (७८) कामण वन्धनकर्म ।