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________________ २१८ जिनवाणी प्रथम गतिकर्म-इससे जीवकी संसारगति निश्चित होती है। गतिके ४ प्रकार हैं(५६) नरकगति-इसके उदयसे जाव नारकी शरीर धारण करता है। (५७) तिर्यंच गति-इसके उदयसे जीवको पशु पक्षी आदि तिथंच गति मिलती है। (५८) मनुष्यगति-इसके उदयसे जीव मनुष्य-शरीर प्राप्त करता है। (५९) देवगति-इसके उदयसे जीवको देवशरीर मिलता है। द्वितीय जातिकर्म-यह जीवकी जाति निर्धारित करता है। जातिके पांच भेद है। (६०) एकेन्द्रिय जाति--एकेन्द्रिय जातिकर्मके उदयसे जीव एकमात्र स्पर्शनेन्द्रिय प्राप्त करता है। (६१) द्वि-इन्द्रिय जाति-इसके उदयसे जीव स्पर्श और रसना ये दो इन्द्रियां प्राप्त करता है। (६२) तीन-इन्द्रिय जाति---इसके उदयसे जीव स्पर्श, रसना और घाण ये तीन इन्द्रियां प्राप्त करता है। (६३) चतुरिन्द्रिय जाति-इस कर्मके उदयसे जीव स्पर्श, रसना, घाण और चक्षु ये चार इन्द्रियां प्राप्त करता है। (६४) पंचेन्द्रिय जात-इसके उदयसे जीवको पांच इन्द्रियां प्राप्त होती हैं।
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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