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जिनवाणी
व्यर्थ हो गए है, जिसके कवच, वख्तर, काटकर दो टूक कर दिये गए है, जिसके छत्र काटकर गिरा दिये गये हैं,
(६) और जिसका भंगार (राजकीय चिह्न सोने-चांदीके लोटे शारी,) फेंक दिये गये है, जिसके रत्न और स्वापतेय (धन) छीन लिये गये हैं, ऐसे सब राष्टिक भोजकों (चारणों)को अपने पैरों पर गिराया । अब पांचवें वर्ष नन्दराजके १३० वर्ष (संवत् )में खुदवाई हुई नहरको तनसुलिय मार्गसे राजधानीमें ले आये। अभिषेकके (छठे वर्ष ) राजसूय यज्ञ करते हुवे करका सब रुपया
(७) माफ कर दिया, और अनेक लाखों अनुग्रह पौर जानपदको बक्षिस किये । सातवें वर्षमें राज्य करते हुवे (उनकी) गृहिणी वज्रघरवाली घुषिता (प्रसिद्ध) मातृपदको प्राप्त हुई (१) [कुमार !] ०००००० आठवें वर्षमें महा ००० सेना ००० गोरधगिरि
(८) को तोड़कर राजगृहको घेर लिया । इसके कामोंकी अवदान (वीरकथाओके)के नादसे यूनानी राजा ( यवनराज) डिमित ....(डेमीट्रियस)ने अपनी सेना और छकड़े इकट्ठे करके मथुरा छोड़ देनेके लिये पीछे पैर हटाए। ०००००० नवम वर्षमें (श्री खारवेलने) दिये है ०००००० पल्लवपूर्ण
१. अनुग्रहका यह अर्थ कौटिल्यमें है। २. इस वाक्यका पाठ और अर्थ सदिग्ध है।
३. घरावर पहाड़ जो गयाके पास है और जिसमें मौर्यचक्रवर्ती अशोकके वनवाए हुवे गुफा मठ हैं, उसका महाभारत और एक शिलालेखमें गोरथगिरिके नामसे उल्लेख है। यह एक गिरिदुर्ग है। इसकी चहार दीवारी अभी तक दृढ है । बढीवड़ी दिवालोंसे द्वार और दरार चन्द हैं ।