________________
भाषानुवाद
२०५ और विधि (धर्मशास्त्रों) में विशारद होकर, सर्वविद्यावदात (समस्त विद्याओंमें परिशुद्ध) ऐसे [उन्होंने ] नौ वर्ष तक युवराजको हैसियतसे राज्य किया। तब पूरे २४ वर्षकी उमरके होकर वि], जो बाल्यावस्थासे वर्धमान है और जो अभिविजयमें वेन (राज) है, तीसरे
(३) पुरुष युगमें (तीसरी पीढ़ीमें ) कलिंगके राजवंशमें महाराज्याभिषेकको प्राप्त हुवे। अभिषेकके पश्चात् प्रथम वर्षमें, आंधी (तूफान) से जिसका दरवाज़ा टूट गया था उस किलेकी मरम्मत कराई । कलिंग नगरी (राजधानी)में ऋपि खिवीरके तलैया-तालाब और पाल (घाट) बनवाए। सब चागोंकी मरम्मत
(४) करवाई। पैंतीस लाख प्रकृति (प्रजा)का रंजन किया। दूसरे वर्षमें सातकणि (सातकर्णि)की तनिक भी परवाह न करके पश्चिम दिशामें (चढ़ाई करनेके लिये) घोड़े, हाथी, पैदल और रथोंवाली बड़ी सेना मेजी। कन्हवेनां (कृष्णवेणा नदी) पर पहुंची हुई सेनाके द्वारा मुसिक (मूपिक) नगरको बहुत त्रास दिया। फिर तीसरे वर्षमें
(५) गंधर्ववेदके पंडित ऐसे ( उन्होंने ) दंप (डफ?), नृत्य, गीत, वादत्रके संदर्शनों (तमाशों )से उत्सव, समाज (नाटक, कुस्ती, आदि) करवाकर नगरीको क्रीडा कराई। तथा चौथे वर्षमें विद्याधराधिवासको, जिसे कलिंगके पूर्ववर्ती राजाओने बनवाया था और जो पहिले गिर नहीं गया था । ०००००० जिसके मुकुट
१. अहतपूर्वका अर्थ 'नवीन वस्त्र चढ़ाकर ' ऐसा भी हो सकता है। २. यह अक्षर नष्ट हो गए हैं।