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भाषानुवाद [खारवेलका शिलालेख वंगलाभापामें लिखा जानेके पश्चात् उसके पाठ और अर्थके विषयों पुरातत्त्ववेत्ताओंमें बहुत अधिक चर्चा हुई है। अन्तमें विद्यावारिधि काशीप्रसाद जायस्वालने उक्त लेखके पाठ तथा अर्थोंमें संशोधन करके उसकी बहुतसी अस्पष्टताओको स्पष्ट कर दिया है। उसका अनुवाद श्री पं. सुखलालजीने 'साहित्य संशोधक, में प्रकाशित किया है, जिसे यहां उद्धृत किया जाता है।
(१) अरिहंतोको नमस्कार, सिद्वोंको नमस्कार, ऐर (ऐल) महाराज, महामेघवाहन, (महेन्द्र) चेदिराज-वंशवर्धन, प्रशस्त शुभ लक्षणवाले, चतुरन्तव्यापी गुणयुक्त कलिंगाधिपति श्री खारवेलने ___ (२) १५ वर्ष तक श्री कडार (गौरवर्णवाले ) शरीरसे वाल्यकाल की क्रीडाएं की। तत्पश्चात् लेख्य (सरकारी हुक्मनामे ), रूप (टकसाल), गणना (सरकारी हिसाव किताव आय व्यय), व्यवहार (कानून)
१. लेख्यका अर्थ (शासन) कौटिल्य अर्थशास्त्र में १, ३१ देखिये। २. कौटिल्य अ. १, ३३ देखिये।
३. कौटिल्य अ. १,२८, रूप, लेखा और गणनाके विषयमें सूत्र थे, यह वात महावग्गकी टीकासे प्रकट होती है। महावग्ग १,४६ ।
जैन सूत्र में लिखा है कि महावीरस्वामीका नाम वर्धमान पड़नेका कारण यह था कि उनके जन्मसे ही जातिवंशकी धनधान्यादिसे वृद्धि होने लगी थी।
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