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________________ भाषानुवाद २०७ ( ९ ) कल्पवृक्ष, घोड़े, हाथी, रथवानसहित रथ, एवं मकान और अग्निकुंडसहित शालाएं । यह सब स्वीकार करानेके लिए ब्राह्मण जातिको आगीरें दीं । अर्हतके ०००००० (१०) राजभवनरूप महा विजय ( नामक ) प्रासाद उसने अड़तीस लाख (पण) से बनवाया । दशम वर्ष में दंड - संधि - सामप्रधान (उन्होंने) भूमिजय करनेके लिये भारवर्षमें प्रस्थान किया ०००००० जिन पर चढ़ाई की उनके मणिरत्न प्राप्त किए । (११) ००००००००० (ग्यारहवें वर्ष में ) ( किसी) बुरे राजाने बनवायें हुवे मंड (मंडी या बजार) को बड़े गधोंके हल्से जुतवा दिया। लोगों को ठगनेवाले ११३ वर्षके तमरके देहसंघातको तोड़ ' दिया । बारहवें वर्ष में ०००००००००००० से उत्तरापथके राजाओं को बहुत त्रस्त किया । (१२) ०००००० वह मगध वासियोंको भारी भय दिखलाता हुवा हाथियोंको सुगांगेय (प्रासाद) तक ले गया । और मगधराज बृहस्पतिमित्रको अपने पैरों पर झुकाया तथा राजा नन्द द्वारा १. ये सोनेके होते थे । ' चतुर्वर्गचिन्तामणि' दान काण्ड ५ । यह महादान में है । २. यहोंसे लेकर अन्त तक प्रत्येक पंक्तिमें लगभग १२ अक्षर पक्तिके आरम्भके पत्थरकी पतरीके साथ उखड़ गए हैं। ३. मुद्राराक्षस नाटकों नन्द और चन्द्रगुप्तका 'सुगाग ' महल पाटलीपुत्रमें बतलाया गया है। ४. बृहस्पतिमित्रके सिक्के मिलते हैं, जो अग्निमित्रके सिक्कोंसे पुराने माने जाते हैं और वे उसी प्रकारके हैं। नामक
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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