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________________ महामेघवाहन महाराजा सारवेल खारवेलका लेख यह वात निस्सन्देह रूपसे सिद्ध करता है कि खारवेल स्वयं जैनधर्मावलम्बी था। वह जब सिहासनारूढ़ हुवा तब यद्यपि कलिंग स्वतन्त्र था, तथापि उससे थोड़े ही समयपूर्व उसपर भयंकर आक्रमण हो चुका था, जिससे उसकी प्रजा बरबाद हो चुकी थी। प्रसिद्ध प्रसिद्ध चैत्य मन्दिर, प्रासाद आदि वीरान हो चुके थे, इतना ही नहीं, अपितु प्रचलित धर्म और साधुसम्प्रदायको भी बड़ा भारी आघात पहुंचा था। यह सब इस लेखकी पंक्तियोंमें बराबर सुरक्षित रहा है। कलिंग पर किये गये इस सीतमकी कहानी अशोकका शिलालेख भी कह रहा है। असंख्य कलिंगवासी तलवारकी धार उतरे थे, बेड़ियोंमें जकड़े गये थे, नगर उजाड़ हो गए थे और धर्मध्यान करनेवाले साधु परेशान हुवे थे, यह बात अशोकके अपने लेखमें भी है। यह अनुमान किया जाता है कि अशोककी चढाईके बाद कलिंगकी जो दुर्दशा हो गई थी उसका सुधार खारखेलने किया। उसने देशके चैत्य मन्दिरों आदिकी पुनः प्रतिष्ठा की और कलिंगके मन्द हुवे ऐश्वर्यको एक बार पुनः जगमगा दिया। इस शिलालेखमें यह भी अंकित है कि कलिंगमें पहिलेसे ही अर्थात् बहुत लंबे समयसे जैनधर्मका प्रचार था। ऐसा प्रतीत होता है कि, अशोकके प्रबल आक्रमणसे प्रचलित जैनधर्मको भी बहुत कुछ आघात पहुंचा था। महाराजा खारवेलने इस लुप्त होते हुवे धर्मका पुनरुद्धार किया। जिनशासनके साधुसंप्रदायके लिये उसने उपाश्रय बनवाए और जो जीर्ण हो गए थे उनकी मरम्मत कराई। खारवेल केवल धार्मिक ही नहीं था। वह शौर्य वीर्यमें भी कुछ
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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