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________________ १९८ जिनवाणी __ "घटालीण्ह चतरे च वैरियगमेथम्मे पतिठापयति पानतरिया सतसहसहि। मुरियकालवोछिन च चोयटिअगसतिक तुरिय उपादयति। खेमराजा स वढराजा स भिखुराजा धमराजा पसतो सुनतो अनुभवतो कलाणानि ।" " उसने भूमि गृह, चैत्य मंदिर और स्तम्भोका निर्माण कराया।" प्रिन्सेपका मत है कि इसी पंक्तिमें शौरसेनके साथके युद्धकी चात होनी चाहिये। (१७) "......गुणविसेसकुसलो सक्पासडपूजको सवदेवायतनसकारकारको। [अ] पतिहत चकिवाहिनिलो चकधुरो गुतचको पवतचको राजसिवसकुलविनिश्रितो महाविजयो राजा खारवेलसिरि।" । "अन्य मतावलम्बी भी जिसकी सतत पूजा करते हैं वह, शत्रुओंका संहार करनेवाला, लक्षपति, बहुतसे पर्वतोंका निर्भय अधिपति, सूर्यके समान, विजेता खारवेल ।" खारवेलके इस शिलालेखके उपरोक्त पाठमें बहुतसी अशुद्धियां है। पंक्तियों के अर्थक सम्बन्धमें भी पण्डित एकमत नहीं है। शिलालेखके अक्षर-वाक्य बहुतसी जगहमें खण्डित है । अत एव पाठ और अर्थका यथोचित निर्णय नहीं हो सकता । तथापि जो कुछ समझमें आया है, जो मान्य हुवा है उससे इस खारवेलके शिलालेखका ऐतिहासिक मूल्य पूर्वोक्त अशोकके शिलालेखसे तनिक भी न्यून नहीं है। ___अशोकके शिलालेखके समान इस खारवेलके शिलालेखसे भी, इसे खुदवानेवाले नृपतिके जीवनकी कितनी ही हकीकतें मिल आती है। उसके पड़ोसी राज्यों के सम्बन्धमें भी थोड़ी जानकारी मिलती है
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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