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महामेघवाहन महाराजा खारवेल
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"... • तु [] जमलिखिलवरानि सिहरानि निवेसयति सतवेसिक्न परिहारेन । अभुतमछरिय च' हथिनावन परिपुर मवदेन हयहथीरतनामा] निक पण्डराजा चेदानी अनेकानि मुतमणिरतनानि अहरापयति इध सतो।"
___ " वाराणसीमें भी उसने पुष्कल स्वर्ण वितीर्ण किया....बहुतसे मूल्यवान रत्न दान दिये।" यह प्रिन्सेपकृत अर्थ है।
"... ..सिनो वसीकरोति। तेरसमे च वसे सुपवतविजयचक कुमारीपवते मरिहते [य?] पखीणससितेहि कायनिसीदीयाय यापनावकेहि राजभितिनि चिनवतानि वसासितानि । पूजाय रतवास खारवेलसिरिना जीवदेहसिरिका परिखिता।" ___१३०० में उसने पर्वतविजयकी कन्याके साथ विवाह किया।" प्रिन्सेपके इस अर्थमें निम्न लिखित सुधार हुवा है
"राजल्वके १३वे वर्षमें उसने कुमारी पर्वत पर एक स्तम्भ स्थापित किया और आहेत-निवासोका जीर्णोद्धार कराया।"
___ "......[सु] कतिसमणसुविहितान [नु!] च सतदिसानं [नु?] बानिन तपसि इसिन सघियन [नु] अरहतनिसीटिया समीपे पमारे वराकरसमुथपिताहि अनेकयोजनाहिताहि प. सि. ओ ..सिलाहि सिंहपथरानिसि [.] धुडाय निसयानि।"
प्रिन्सेप इसका अर्थ न कर सका। आजकल पण्डित इसका अर्थ इस प्रकार करते है___"आहेत-निवासोंके पास रत्नखचित, चार खम्भोंवाले कामचलाऊ मकान भी वनवाए।"