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________________ महामेघवाहन महाराजा चारवेल ૨ जैसे पौराणिक राजाओंकी बात जाने दो, ऐतिहासिक कालमें भी पराक्रमी और धर्मपरायण राजाओं की कमी नहीं रही। कौन नहीं जानता कि, विक्रमादित्य राजराजेश्वर होनेके साथ ही धार्मिकोंमें भी अग्रगण्य था । सम्राट चन्द्रगुप्तने अपने अन्तिम जीवनमें जैनधर्मकी दीक्षा ली थी, ऐसा वर्णन भी मिलता है। महाराजा कनिष्क और गिलादित्य जैसे बौद्ध राजा पराक्रमी थे और साथ ही धर्मपरायण भी थे, यह बात इतिहासवेत्ता एक स्वरसे स्वीकार करते है । अशोकके संबन्ध में भी यही बात है । एक ओर कलिंगको विजय, अर्थात् असाधारण गौर्य, वीर्य था और दूसरी ओर ज्वलन्त धर्मनिष्ठा - धर्मके सतत प्रचारके लिये अविराम उद्योग था । ▸ कलिंगदेश मगधकी बेडियोंसे कब तक जंकड़ा रहा यह निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता । यह भी ठीक ठीक नहीं कह सकते कि यह वेडी कब और किसने तोड फैकी। इसमें तो संदेह नहीं कि, अशोककी मृत्युके पश्चात् तुरन्त ही कलिंग साम्राज्यसे बाहर - मुक्त - हो गया था । मगध में मौर्यगासन अन्तिम श्वास ले रहा था, मृत्युशैया पर पड़ा था, उस समय कलिंगके एक प्रतापी राजपुरुषका जन्म हो चुका था । इस राजपुरुपका नाम था खाखेल | खारवेल पराक्रममें अशोकसे किसी प्रकार भी कम न था । धर्मनिष्ठामें वह अशोकका प्रतिद्वन्द्वी था। महाराजा खाखेल महानेधवाहनके नामसे भी प्रसिद्ध था । वह जैनधर्मावलम्बी था । उड़ीसा उदयगिरिको हाथी गुफामेंसे महाराजा खाखेलका एक शिलालेख मिला है । वह ठीक ठीक नहीं पढ़ा जाता, उसका अर्थ
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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