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________________ जिनवाणी करनेमें भी वहुतसी कठिनाइयोंका सामना करता पड़ता है। उसके विषयमें पण्डितोंमें बहुत मतभेद है। यहां मैं उसमेंसे कुछ पाठ उद्धृत करता हूं। संभव है इसमें भी कुछ भूलें हो। एक एक पंक्ति उद्धृत करके उसका अर्थ दिया जायगा। (१) ___ नमो अरहतान [1] नमा सवसिधान [1] ऐरेन महाराजेन माहा. मेघवाहनेन चेतिराजवसवधनेन पसथसुभलखनेन चतुरन्तलठितगुनोपहितेन कलिंगाधिपतिना सिरि खारवेलेन ।" " अर्हतको नमस्कार। सकल सिद्धोंको नमस्कार। (यह) महाराजा ऐरकर्तृक (खोदित) । वह मेवरूप महारथ पर आरूढ है । वह मन और इच्छासे उज्ज्वलतम धनका अधिकारी है। उसका शरीर अत्यन्त सुन्दर है। उसकी सेना अत्यन्त निर्भय है। कलिंग द्वीपके ८३ पर्वतों पर उसने गुफाएं खुदवाई हैं।" प्रिन्सेपका कथन है कि, इस लेखको खुदवानेवाले राजाके वास्तविक नामका इसमें उल्लेख नहीं है। उसने अपनेको 'ऐर' और 'महा मेघवाहन' नामसे सुचित किया है। 'ऐर' शब्दका अर्थ इरा अर्थात् पौराणिक ईलाकी सन्तान होता है। महामेघवाहन शब्द भी काल्पनिक अर्थका द्योतक है। प्रिन्सेपके पश्चातके पण्डितोंने प्रिंसेपके अर्थोंमें कुछ भूलें निकाली है । उनके मतानुसार उपरोक्त पंक्तिका अर्थ इस प्रकार होता है "अहतको नमस्कार, सकल साधुओंको नमस्कार। आर्य महाराजा खारवेल श्री (कर्तृक खोदित); इनका दूसरा नाम महामेघवाहन है। ये कलिगाधिपति है। ये चेतवंशधर है। वह क्षेमराज अर्थात् शान्ति
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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