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जिनवाणी महात्मा वहां रहते थे। यह नया मौर्य सम्राट अपने शौर्यके अभिमानमें चूर होकर कलिंग-विजयके लिये निकला । पर कलिंगने दीनता न प्रकट की, वह भी मुकाबलेमें आ डटा । इतिहास तो इस युद्धकी कथाको भूल गया । इसका पूर्ण विवरण नहीं मिलता, तथापि अशोकका शिलालेख यह सिद्ध करता है कि यह युद्ध एक त्रासदायक और रोमांचकारी घटनाके रूपमें परिणत हो गया था। स्वदेशके स्वातन्त्र्यकी रक्षाके लिये, धर्म, धन और मानकी रक्षाके लिये लाखों कलिंगवासिओने अपनी देह बलिदान की थी । लाखों कलिलावासी मौर्यसम्राटके वन्दी बने थे। कितने ही लोगोंको अपने प्यारे वतनसे विलग होना पड़ा था। अनेकोंको असह्य यन्त्रगाकी चीमें पिसा जाना पड़ा था। इस युद्ध में अगोकने विजय प्राप्त की थी। कलिंगको मगध-सत्राटके चरणों पर नतमस्तक होना पड़ा था।
परन्तु मनुष्यत्वकी दृष्टिसे देख तो कलिगने ही अशोक पर विजय प्राप्त की थी। कलिंगायुद्धके भयंकर मानवसंहार और पाशविक अत्याचारने अनोकके हृदयको चिर्दाग कर दिया। इसके बाद अगोकने कोई युद्ध नहीं किया । कलिंग-युद्ध उसके जीवनमें अन्तिम बुद्ध बन गया। इसके पश्चात् उसने धर्मका आश्रय लिया। देखते ही देखते उसने अपनी धर्मनिष्ठाके लिये ख्याति प्राप्त कर ली । पर्वतो परके उसके शिलालेख और अनुशासन इस वातकी साक्षी दे रहे हैं।
प्रवल पराक्रमी चक्रवर्ती जैसे अशोक राजाने धर्मके लिये जिस त्यागभावनाका स्वीकार किया है वह आर्यावर्तके प्राचीन राजाकी एक विशिष्टताकी घोतक है । खुपति, युधिष्ठिर और जनक आदि राजर्षि