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________________ महामेघवाहन महाराजा खारवेल प्राचीन समयमें, भारतवर्षके प्रख्यात आर्य राज्योंमें कलिंगका नाम विशेष महत्त्व रखता है। कलिंगका ऐश्वर्य और उसकी धर्मनिष्ठाके वर्णनसे इतिहासके पृष्ठ सुशोभित है। वह सभ्यता कितनी पुरानी है यह तो अभी तक निश्चय नहीं हो सका। अति प्राचीन पुस्तकोंमें भी कलिंगका नामोल्लेख है। एलेक्जेंडरको सवारीके वर्णनमें कलिंगका नाम है; मेगस्थनीज़ने भी अपनी प्रवासपुस्तकमें कलिंगको स्थान दिया है। महाराजा अशोकके एक शिलालेखमें कलिंगके सत्यानाशकी एक अत्यन्त रोमांचकारी घटनाका वर्णन है। यह शिलालेख सावाजगिरि पर्वतमें मिला है। उसका मूल पाठ और अर्थ नीचे दिया जाता है :____ "अ(स्टव) अ अभिसित ( दे)वान प्रिअस पिअद्रशी (स) राजो क (लिग विजित) (दिषध) मत्रे (प्रणशत सहले) येततो अपवूढे सतसहस्र (म) त्रे तत्र हते वहु (तवतके ) मूटे (1) ततो (प)छ अधून लसु (कलिंगेसु) तिने ध्रम (पलनम् ) ध्रम (क) मत ध्रमनुशस्ति च देवानं प्रि (अ)स । सो अस्ति अनुसोचन (म्) देवानं प्रिअस विजिनितु (क)लिंग(नि) (1) अविजितं हि (विजि) नमनि (ये) तत्र वधो व (म) रणम् व अपव( हो) व जनस (1)
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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