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जिनवाणी संप्रदाय एक दूसरे में मिल गए।
इस विवेचनसे इतना सिद्ध होता है(१) भगवान महावीरके पूर्व भी जैन संप्रदाय था।
(२) यह संप्रदाय पार्श्वनाथको तीर्थकर मानता और उनके उपदेशमें पूर्णतः श्रद्धा रखता था।
(३) महावीरस्वामीने पावनीथके शासनका संस्कार और संशोधन करके उसका खूब प्रचार किया था। उन्हें कुछ नवीन बात कहनी न थी। केगी गौतम सम्वाद पार्श्वनाथकी ऐतिहासिकताको सिद्ध करता है। __जैन मन्तव्यके अनुसार भगवान् महावीरस्वामीके निर्वाणसे २५० वर्ष पूर्व भगवान् पार्श्वनाथका निर्वाण हुवा है। भगवान् पार्श्वनाथकी आयु १०० वर्षकी थी। ईसवी सनके ५९९ वर्ष पूर्व महावीरस्वामीका जन्म और ५२७ वर्ष पूर्व निर्वाण हुवा था। ५२७ में २५० मिलानेसे ८७७ होते है; अतएव ईसवी सनके ८७७ वर्ष पूर्व पार्श्वनाथ भगवानके जन्मसे यह भारतभूमि धन्य हुई थी।
भगवान् पार्श्वनाथ ३० वर्ष गृहस्थावस्थामें और ७० वर्ष व्रतावस्थामें रहे अर्थात् उन्होंने कुल १०० वर्षकी आयु भोगी।
कमठे धरणेन्द्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वति ।
प्रभुस्तुल्यमनोवृत्तिः पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः॥
कमठने प्रभुपर उपसर्ग किये, धरणेन्द्रने उनकी भक्ति की, तथापि पार्श्वनाथने तो दोनो पर समान दृष्टि ही रक्खी। ऐसी समान दृष्टिवाले प्रमु आपकी सम्पत्तिके लिये हों!