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भगवान पार्श्वनाथ
१८१ या नहीं ?- इत्यादि प्रश्नोंकी छानवीन की गई है, यह बात स्पष्ट प्रतीत होती है। केशी मुनिके सब प्रश्नोंका गौतमस्वामीने सन्तोषकारक समाधान किया था। ____ आचार्य केशीने पूछा : " पार्श्वनाथने तो चार महावत बतलाए हैं, फिर वर्धमान पांच क्यो बतलाते हैं।"
गौतमस्वामी उत्तर देते है : “पार्श्वनाथको अपने समयकी स्थितिके अनुसार चार महानत ही उचित प्रतीत हुवे होगे। महावीरने अपने कालके औचित्यके अनुसार इन्हीं चार व्रतोंको पांच व्रतोंमें विभक्त करना उचित समझा। वस्तुतः सिद्वान्तको दृष्टिसे तो दानों तीर्थंकरोंके निरूपणमें कुछ भी भेद नहीं है।
अचेलक और सचेलक विषयकी चर्चा करते हुवे गौतमस्वामी एक और समाधान भी करते हैं :
पत्रके त्याग अथवा स्वीकारके वारेमें भी कुछ मतभेद नहीं है। लोगों के विश्वासके लिये ही भिन्न भिन्न प्रकारके उपकरणोकी कल्पना की गई है। संयम निभानेके लिये और अपने ज्ञानके लिये भी लोगोमें वेषका प्रयोजन है। नहीं तो, निश्चय नयके अनुसार तो ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही मोक्षके सत्य साधन है। इस प्रकार पार्श्वनाथ भगवान् और वर्धमानस्वामीकी एकसी प्रतिज्ञा है । वेष तो केवल व्यवहारनयकी अपेक्षासे है।
पार्श्वनाथ भगवानके संप्रदायके नायक श्रीकेशीकुमारको इससे विश्वास हो जाता है कि पार्श्वनाथ भगवान और वधर्मानस्वामीके उपदेशमें किसी प्रकारका मौलिक मतभेद नहीं है। इसके पश्चात् दोनों