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भगवान पार्श्वनाथ
१७७ सिंह, वाघ, भेड़िया और हाथी जैसे प्राणी भी घबरा उठे। जहां पानी ठहर भी नसकता था वहां भी वर्षाका जल कृत्रिम तालावके समान स्थिर हो गया। ___ वर्षाका यह पानी बढ़ते बढ़ते, कायोत्सर्गमें अचल खड़े हुवे भगवानकी नासिका तक जा पहुंचा, तथापि भगवान पार्श्वनाथ तो अचल और अङग ही रहे।
- इसी समय धरणेन्द्रका आसन कापा । उसने तुरन्त आकर भगवान् पर अपने सात फणोंका छत्र धारण किया । अन्ततः पराजित मेघमालीने भी भगवानसे क्षमा याचना की।
दीक्षा लेनेके पश्चात् ८४ दिन बीतने पर चैत्र कृष्णा चतुर्दशीको विशाखा नक्षत्रमें भगवानको केवलज्ञान हुवा ।
(९) केवलज्ञानके प्रमावसे पार्श्वप्रभु तीनों लोकके समस्त पदार्थीको जानते हैं। उनके आसपास शान्ति, प्रसन्नता और सुख लहराते है। वृक्ष और लताएं भी फलो और पुप्पोक भारसे झुके रहते है। वे जहां जाते हैं वहां देव समवसरणकी रचना करते हैं। इस समवसरण समामें सव प्राणियोंके लिये स्थान होता है। ___ भगवानने देशदेशान्तरमें सद्धर्मका खूब खूब प्रचार किया। काशी, कोगल, पंचाल, महाराष्ट्र, मगध, अवन्ती, मालव, अंग, वंग आदि आर्यखण्डके समस्त देशोंमें सत्यधर्मका प्रकाश पहुंचा । संसारके दुःखोंसे दुःखी, संतापसे संतप्त असंख्य जीव भगवानकी वाणी सुनकर निनशासनसे प्रेम करने लो।
भगवानके परिवारमें १६ हजार साधु, २८ हजार साध्वी, एक