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जिनवाणी ___ संसारके स्वरूपको आच्छादित करनेवाला परदा पार्श्वकुमारकी दृष्टिके आगेसे हट गया। जिस जीवको इन्द्रका अगाध वैभव भी परितृप्त न कर सका उसे संसारके क्षणिक मुखोपभोग किस प्रकार सन्तुष्ट कर सकते थे ? सार समुद्रका पान करने पर भी जिसकी तृपा गान्त न हो सकी उसे इस संसारके ओसबिन्दुओं जैसे मुखोसे क्या शान्ति मिल सकती है ? इन्द्रियसुख और इन्द्रियलालसाके कारण नटके समान अनेक विलक्षण अभिनय करते हुए संसारी स्त्री-पुरुषोंकी एक बड़ी चित्रशालाको पार्श्वकुमार न जाने कब तक देखते रहे।
उन्होंने संसार-त्यागका दृढ निश्चय किया। माता-पिताकी अनुमति लेकर [वार्षिकदान देकर वे सर्वस्व त्याग करके चल दिये। देवों और इन्द्रोंने भी उस दिन महोत्सव मनाया । पार्वकुमारका संसारका त्याग संसारके महान् सौभाग्यका अवसर था। उनके साथ ३०० जितने राजाओंने दीक्षा ली।
पार्श्व भगवान विहार करते हुवे एक दिन कुवेके निकटवर्ती एक वटवृक्षके नीचे कायोत्सर्गमें स्थिर हो गये। सूर्यास्त हो चुका था। पासवाले तापस आश्रममें भी शान्ति प्रवर्तमान थी।
इस समय मेघमालीने पूर्व वैरकी याद करके भगवान पर अनेक प्रकारके उपसर्गीकी वर्षा की।
मूशल्यारा वर्षाका उपद्रव अन्तिम और सबसे अधिक कठोर था। मेघवारा क्या थी, मानों प्रलयकाल स्वयं मेघका रूप धारण करके पृथ्वी पर उतर आया हो, इतना तुफान मच गया, पानीकी एक एक बून्द शिकारीके गोफनसे निकले हुवे पत्थरके समान आघात करती थी।