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जिनवाणी लाख चोसठ हजार श्रावक एवं तीन लाख सत्ताईस हजार श्राविकाएं हुई। ३५७ चौदपूर्वी, १४०० अवधिज्ञानी, ७५० केवली और एक हजार वैक्रिय लब्धिधारी हुवे । । कमठ जैसा भगवानका वैरी भी पार्श्वनाथ प्रभुकी शांति और उनका धैर्य देखकर उनके चरणोंमें गिरा । भगवानका उपदेश सुनकर उसने भी अपने हृदयमें रहे हुए जहरको निकाल फैका। आखिरको उसे सम्यग्दृष्टि प्राप्त हुई और वह मोक्ष-मार्गका अधिकारी हुवा। पार्श्व प्रभुकी करुणाकी वर्षा, मित्र और वैरीके मेद विना, सर्व जीवों पर समान रूपसे होती थी। ।
कितनेक तापस अज्ञानमय तप कर रहे थे; केवल कायाक्लेश सह रहे थे। उन्होंने पार्व प्रभुके सत्यमार्गका स्वीकार किया। " । निर्वाणके एकाध महिना पूर्व भगवान् संमेतशिखर पर पधारे। जैिन समाजमें यह तीर्थ बहुत प्रसिद्ध है। यहां बहुतसे साधकों, मुनिवरोंका पवित्र आगमन हुवा है । जिस कालके विषयमें इतिहास भी मौन है, उस अति प्राचीन समयमें इस स्थान पर बहुसंख्यक वैराग्यवान पुरुषोंने आत्मकल्याणकी साधना की है। - इसी स्थान पर पार्श्वनाथ प्रभुने श्रावणशुक्ला अष्टमीको ३३ मुनिबरोंके साथ मुक्ति प्राप्त की। इनके देहका अन्तिम अग्निसंस्कार. देवबृन्दने अत्यन्त भक्तिपूर्वक किया ।। . . . . . , , आज, तो पार्श्वनाथ भगवान शान्तिमय सिद्धशिला पर विराजमान हैं एवं वे अब कभी मर्त्यलोकमें वापस नहीं आएंगे। फिर भी उनका सत्यमार्ग आज सबके लिये खुला है। उनके नामसे स्मरणीय बना