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भगवान पार्श्वनाथ
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तृणवत् समझकर वह दीक्षा लेकर चल निकला । कठोर तपश्चर्याक बलसे वह अध्यात्मज्ञानका अधिकारी हुवा ।
किरणवेगको काटनेवाला वह फणिधर अपने पापके कारण छठे नरकमें उत्पन्न हुवा। वहां उसे २२ सागरोपम आयु बितानेमें अनेकों असह्य यन्त्रणाएं सहन करनी पड़ीं। इसके पश्चात् उसने ज्वलन पर्वत पर कुरंगक नामक भीलके रूपमें जन्म धारण किया। वह वनमें पशुओंकी हत्या करता हुवा दिन बिताता था। उसके दुष्कर्म और दुराचारकी कोई हद न थी ।
सर्वस्व त्यागी वज्रनाभ एक चार इसी गंभीर अरण्यसे हो कर गुजर रहे थे । कुरंगकने उन्हें देखा और उसका पूर्व वैर ताज़ा हो गया । अति तीत्र और कठोर मनोभाववाले इस कुरंगकने मुनिवरकी जान लेनेके लिए शरसंधान किया । तीर लगते ही उसकी वेदनासे मुनिराजने तत्काल प्राणत्याग कर दिया | अन्तिम क्षण तक वे धर्मध्यानपरायण हो रहे । वे मुनिराज मध्यम ग्रैवेयकमें ललितांग नामक देव हुवे ।
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रौद्र ध्यानके परिणाम स्वरूप कुरंगक मरकर सातवें नरकमें गया, जहां उसने २७ सागरोपम जितने काल तक अवर्णनीय दुःख भोगे । (५),
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जंबूद्वीपके भरतखण्डमें सुरपुर नगर में वज्रबाहु राजा राज्य करता हैं। उसे जिनशासनमें खूब श्रद्धा है । ललितांग देवने इस राजाके यहां जन्म धारण किया ।
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जन्मसे ही यह बालक इतना रूपवान था कि इसे एक बार
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देखने पर किसी भी दर्शककी तृप्ति न होती थी। इसकी आकृति ही