________________
जिनवाणी
आनन्दके अणुओंसे बनी हुई थी। प्रजाको इसके दर्शनमात्रसे ही अत्यन्त आनन्द होता था। बालकका नाम सुवर्णवाहु रक्खा गया। रूपमें एवं गुण और शौर्यमें भी वह अद्वितीय था । यौवनावस्था प्राप्त होने पर अनेक राजकुमारियोंने उसके कंठमें अपनी अपनी वरमाला पहनाई। सुवर्णबाहु कुमारने सिंहासनारूढ होने पर आसपासके सब छोटे-बड़े राज्यों पर विजय प्राप्त कर ली । वह एकमात्र मण्डलेश्वर वना ।
एकदिन मन्त्रीने राजाके सामने शिर झुकाकर कहा:
" आज वसन्तऋतुका पवित्र दिन है । जिनशासनका भी एक पवित्र पर्व है । बहुतसे भदिक, भवी जीव आज जिनेश्वर भगवानको पूजा-अर्चा-स्तुति आदि करेंगे । आपको भी इस पुण्यक्रिया में भाग लेना चाहिये।" ___मन्त्रीकी सलाह मंडलेश्वरको पसंद पड़ गई। उसने नगरमें महोत्सव मनाकेकी आज्ञा की। स्वयं भी स्नानादिसे निवृत्त होकर जिनमंदिरमें गया और जिनेंद्र भगवानकी पूजा की। । पूजा करते समय उसे एक शंका उत्पन्न हुई। शंका, आकांक्षा, जिज्ञासा, ये किसी एक ही युगकी वस्तुएं नहीं है। प्राचीन श्रद्धाप्रधान माने जानेवाले युगमें भी इस प्रकारकी शंकाएं उठती थीं। सुवर्ण
१ यह हकीकत भट्टाचार्यजीने , कहांसे ली है, यह बात उन्होंने नहीं लिखी; श्वेताम्बर साहित्यके पार्श्वनाथचरित्रमें यह नहीं है।
(गुजराती अनुवादक श्रीसुशील) २ यही जिज्ञासाक स्थानमें विचिकित्सा (फलका संदेह) चाहिये।
(गुजराती अनुवादक श्रीसुशील)