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________________ जीव १४९ 1 लिये भरतक्षेत्रके मन्यमें स्थित पर्वतका नाम विजयार्ध रक्खा गया है। इसे रजताद्रि भी कहते हैं । गंगा और सिन्धु नदीका पानी, विजयार्ष पर्वतके उत्तर भाग में बहता हुवा, इसी पर्वतके पत्थरोंको भेदन करके दक्षिणसमुद्रमें मिलता है। इस पर्वतके उत्तर और दक्षिणमें भी तीन-तीन खण्ड है | विजयार्थके उत्तरवर्ती तीन खंड और दक्षिणके दोनों ओरके दो खण्ड म्लेच्छ खण्ड हैं । और मध्यमें आयावर्त है । भरतक्षेत्रके पश्चिम, दक्षिण और पूर्वमें समुद्र तथा उत्तरमें कुलाचल है । जम्बूद्वीपके सात क्षेत्रके इस प्रकार खण्ड समझ लेना । दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें क्षेत्रमें एक एक गोलाकार पर्वत है । हैमवत क्षेत्रके गोलाकार पर्वतका नाम वृत्तवेदाढ्य है । हिमवान पर्वत पर स्थित पद्मसरोवरसे दो नदियां निकली हैं जो भरतक्षेत्र में आती हैं। एक दूसरी रोहितात्या नदी हैमवतक्षेत्रके वृत्तवेदाढ्य नामक पर्वतके अर्ध भागकी प्रदक्षिणा करती हुई पश्चिम समुद्र में मिलती है। हैमवत क्षेत्रके उत्तरमें महाहिमवान पर्वत है। इसमेंसे भी एक दूसरी नद्रा निकलती है । यह हैमवतक्षेत्रके वृत्तवेदाढ्य पर्वतके दूसरे आधे भागकी प्रदक्षिणा देती हुई पूर्व समुद्रमें जा मिलती है। तीसरे क्षेत्रमें मी नदी और गोलाकार पर्वतकी यही स्थिति है । दूसरा और तीसरा क्षेत्र जघन्य तथा मध्यम भोगभूमि समझा जाता है । J चौथे ' क्षेत्रका नाम विदेह और उसके गोलाकार पर्वतका नाम सुमेरु है । इस सुमेरु पर्वतके उत्तर-दक्षिण भागमें उत्कृष्ट भोगभूमि है । पूर्व और पश्चिम भागमें ३२ कर्मभूमियां हैं। विदेहक्षेत्रमें सीता और सीतोदा नामक दो नदियां हैं, जो पर्वतकी प्रदक्षिणा करती हुई ·
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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