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जिनवाणी तथा हरिकांता, (४) गीता तथा शीतोदा, (५) नारी तथा नरकांता, (६) सुवर्णकुला तथा रूप्यकुला और (७) रक्ता तथा रक्तोदा। कुल मिलकर १४ नदियां है।
प्रत्येक क्षेत्रके पूर्व और पश्चिममें समुद्र है। ऊपर प्रत्येक क्षेत्रमें जिन दो-दो नदियोंका नामोल्लेख किया गया है, उनमें से पहिली पूर्वी समुद्रमें और दूसरी नदी पश्चिमी समुद्रमें जाकर मिलती है। गंगा
और सिंधुमें से प्रत्येककी उपनदियोंको संख्या लाभग १४ हजार है। दूसरे, तीसरे और चाये क्षेत्रकी महानदियों से प्रत्येकको उपनदियोंकी संख्या उपरोक्त उपनादयोंसे दोगुनी है। पांचवें, छठे और सातवें क्षेत्रको महानादयोंमेंसे प्रत्येककी उपनदियां यथाक्रम (उत्तरोत्तर) आधी होती जाती हैं। ' जम्बूद्वीपका विस्तार एक लाख योजन है। इसके अन्तर्गत भरतक्षेत्रका दक्षिणोत्तर विस्तार ५२६२ योजन है। भरतक्षेत्रसे लेकर विदेहक्षेत्र तक जितने क्षेत्र तथा पर्वत है उस प्रत्येकका विस्तार उत्तरोत्तर पूर्वके क्षेत्र व पर्वतसे द्विगुण है। विदेहके आगे जो क्षेत्र तथा पर्वत है उनका विस्तार उत्तरोत्तर आधा है । भरतक्षेत्रमें पूर्व-पश्चिमकी ओर समुद्र पर्यंत विस्तृत एक विजया (वैताट्य ) नामक पर्वत है।
भरतक्षेत्रके छः खंड है, जिनमंसे तीन विजयाके उत्तरमें है। इन छ' खण्डो पर विजय पताका फहरानेवाला महीपाल अपनेको चक्रवर्ती कह सकता है। उत्तर दिशाके तीन खण्डों पर जब तक विजय प्राप्त न कर तब तक नृपति अर्धविजयी माना जाता है । इसी.