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________________ जीव १४७ ऐसा है जैसा कि सुवर्णके साथ ताम्र मिलनेसे होता है। चतुर्थ पर्वत नीलगिरि वैडूर्यमय है। पांचवां पर्वत रौप्यनिर्मित और छठा स्वर्णनिर्मित है। इन छः पर्वतोंके शिखर पर क्रमशः पन्न, महापद्म, तिगिंज, केशरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक नामक सरोवर है। पर्वतोंके समान ये सरोवर भी पूर्व-पश्चिम दिशामें फैले हुवे हैं। प्रथम सरोबर एक हजार योजन लम्बा और ५०० योजन चौड़ा है। द्वितीय सरोवर पहिलेसे दोगुना और तीसरा दूसरेसे दोगुना है। चतुर्थ, पंचम और षष्ठ सरोवर क्रमशः तृतीय, द्वितीय और प्रथमके समान है। इनकी गहराई कोई दस योजन होती है। प्रथम सरोवरमें एक योजन विस्तृत एक कमल है। इसकी कर्णिका दा कोसकी और पासवाले दो पत्ते एक एक कोसके है। दूसरे कमलका परिमाण दो योजन है। तीसरे सरोवरके कमलका परिमाण चार योजन है। और चौथे, पांचवें तथा छठे सरोवरके कमलका परिमाण क्रमशः तीसरे, दूसरे और पहिले सरवरोके कमलके समान है। इन छ: कमलों पर यथाक्रम (१) श्री, (२) ही, (३) धृति, (४) कीर्ति, (५) बुद्धि और (६) लक्ष्मी नामवाली छः देवियां विराजमान है। इनमेंसे प्रत्येकका आयुष्य एक पल्योपम है। ये देवियां अपने अपने स्थानोंकी स्वामिनी होती हैं। इनके भी सभासद तथा सामानिक देव होते हैं। मुख्य कमल पर देवी बैठती है और उसके आसपासवाले कमलों पर देवसमूह बैठता है। ___ भरत आदि सात क्षेत्रोंमें क्रमशः निम्नलिखित नदियां बहती हैं(१) गंगा तथा सिन्यु, (२) रोहिता तथा रोहितास्या, (३) हरिता
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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